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अहोई अष्टमी व्रत कथा : पूजन विधि और आरती (Ahoi Ashtami Vrat Katha : Pujan Vidhi Aur Arti)

अहोई अष्टमी व्रत कथा : पूजन विधि और आरती (Ahoi Ashtami Vrat Katha : Pujan Vidhi Aur Arti)

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भारतवर्ष में कई तरह के तीज-त्यौहार मनाएं जाते है जिनमे से एक है, “अहोई अष्टमी का व्रत। इस व्रत को सारी माताएं अपनी संतानों के लिए करती है। यह व्रत माताएं अपनी संतानों की “सुखद भविष्य तथा “लम्बी आयु के लिए करती है। इस गाइड में हम जानेंगे, अहोई अष्टमी व्रत कब है ?, अहोई अष्टमी व्रत कथा, अहोई अष्टमी व्रत की पूजन विधि तथा अहोई अष्टमी व्रत की आरती। आइये जान लेते है, अहोई अष्टमी से जुड़ी जरूरी बातों को :

अहोई अष्टमी व्रत कब है ?(Ahoi Ashtami Vrat Kab Hai?)

कार्तिक माह” के “कृष्ण पक्ष” की अष्टमी को ही “अहोई अष्टमी” कहते है। अहोई अष्टमी का अर्थ है – अनहोनी हो होनी करना

अहोई अष्टमी की तिथियां इस प्रकार है (Ahoi Ashtami Ki Tithiyan) : 

2021 – 28th अक्टूबरगुरुवार

2022 – 17th अक्टूबरसोमवार

2023 –  5th नवंबररविवार

2024 – 24th अक्टूबरगुरुवार

अहोई अष्टमी व्रत पूजन विधि (Ahoi Ashtami Vrat Pujan Vidhi) :

भारत के उत्तरी भाग, उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा अन्य राज्यों में अहोई अष्टमी का व्रत मनाया जाता है। इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है

  • सूर्योदय से पहले उठकर दैनिक क्रियाकलापों को करने के बाद घर में या मंदिर जाकर पूजा करते है ।
  • इस व्रत को निर्जला ही किया जाता है। 
  • संध्या समय अहोई माँ की प्रतिमा लगाकर अपने बच्चो के साथ पूजा सम्पन्न की जाती है तथा अहोई अष्टमी व्रत कथा का पाठ किया जाता है। 
  • शाम के समय तारा निकने के बाद ही भोजन और जल ग्रहण किया जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha):

अहोई अष्टमी का व्रत तभी पूरा होता है जब स्त्रियां इस व्रत को करते हुए व्रत कथा का पाठ भी करती हैं। अहोई अष्टमी से जुडी पौराणिक कथाएं इस प्रकार है :

अहोई अष्टमी व्रत प्रथम कथा : बहुत पुरानी बात है, एक साहूकार था। साहूकार के सात बेटे और सात बहुवें थी। सात बेटों के अलावा साहूकार की एक बेटी भी थी जो प्रत्येक दिवाली पर अपने ससुराल से अपने मायकेँ आया करती थी। दिवाली के दिन घर को लीपने के लिए सातों बहुवें मिटटी लाने जंगल की ओर जाने लगी तो ननद भी उनके साथ गयी। जंगल के जिस स्थान से ननद मिटटी ले रही थी उसी स्थान पर एक स्याहु अर्थात साही भी अपने सात बच्चों के साथ रहती थी। भूमि खोदतें समय साहूकार की बेटी के हाथों में जो खुरपी था उससे स्याहु का एक बच्चा मर गया जिसके कारण स्याहु गुस्से में आकर कहती है कि “मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी और तुम्हारी कोई भी संतान नहीं बचेगी”। 

स्याहु की बात सुनकर साहूकार की बेटी अपने प्रत्येक भाभी से आग्रह करती है की उनमे से कोई अपनी कोख बंधवा ले। सातों भाभियों में से सबसे छोटी भाभी मान जाती है और अपनी कोख बंधवा लेती है और इस वजह से उसका प्रत्येक संतान ही सात दिनों के बाद मर जाती और ऐसा उसके सात पुत्रों के साथ हुआ। यह सब देख उसने एक पंडित से इसका कारण और उपाय पूछा। पंडित जी ने उसे सुरही गाय की सेवा करने हो कहा। पंडित जी की बात सुनकर छोटी बहु सुरही गाय की सेवा करती है जिससे सुरही गाय प्रसन्न होकर उसे स्याहु के पास लेकर जाती है । रास्ते में छोटी बहु और सुरही गाय थक कर एक जगह विश्राम करते है और तभी छोटी बहु देखती है की एक सांप एक गरुड़ पंखनी के बच्चे को मारने की कोशिश कर रहा। यह देख वह सांप को मार देती है और गरुड़ पंखनी के बच्चे को बचा लेती है पर अचानक से गरुड़ पंखनी वहाँ आ जाती है और उसे भ्रम होता है कि  उसके बच्चे को छोटी बहु ने ही मारा और इसलिए वो छोटी बहु को चोंच मारने लगती है परन्तु छोटी बहु गरुड़ पंखिनी को सब सत्य बतला देती है और गरुड़ पंखिनी प्रसन्न होकर छोटी बहु तथा सुरही गाय को स्याहु के घर पहुँचा देती है।  छोटी बहु की सेवा से स्याहु प्रसन्न हो जाती है और उसे “सात बेटे तथा सात बहुवों का वरदान देती है”। स्याहु के वरदान से छोटी बहु के सात पुत्र होता है और सात बहुवें भी। 

अहोई अष्टमी व्रत दूसरी कथा :

बहुत पूरानी बात है, एक गांव में एक औरत अपने सात पुत्रों के साथ रहती थी।  कार्तिक के महीने में वह औरत मिटटी लाने के लिए जंगल की ओर गयीं और मिटटी खोदतें समय उसकी कुल्हाड़ी से भूलवश पशु के शावक की हत्या हो गई।  इस घटना के उपरान्त उस औरत के सारे पुत्र मारे गएँ। औरत ने यह बात गांव के हर औरत को बताई और एक बड़ी महिला ने उस औरत को अहोई अष्टमी व्रत करने का सुझाव दिया। तब, उस औरत ने अहोई माता तथा पशु के शावक का चित्र स्थापित कर उनकी आराधना करने लगी और उसने सात वर्षों तक अहोई अष्टमी व्रत को किया। इस व्रत के फल से औरत के सातों  पुत्र जीवित हो गए ।

अहोई अष्टमी की आरती (Ahoi Ashtami Vrat Ki Arti):

अहोई अष्टमी की व्रत कथा को पढ़ने तथा सुनने के साथसाथ अहोई माता की आरती अवश्य गायें :

।। जय अहोई माता जय अहोई माता ।।

।। तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता ।।

।। ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता ।।

।। जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ।।

।। तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।।

।। कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ।।

।। जिस घर थारो वास वही में गुण आता ।।

।। कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ।।

।। तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता ।।

।। खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ।।

।। शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता ।।

।। रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता ।।

।। श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता ।।।। उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ।।

Frequently Asked Questions

1. अहोई अष्टमी का अर्थ क्या है?

अहोई अष्टमी का अर्थ है अनहोनी को होनी करना

2. अहोई अष्टमी का व्रत कौन और किसके लिए करता है?

अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपनी संतानों के लिए करती है।

3. क्या अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला करते है?

जी हाँ, अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला ही करते है 

4. अहोई अष्टमी व्रत का उद्यापन कब किया जाता है?

अहोई अष्टमी व्रत का उद्यापन शाम के समय तारा निकलने पर की जाती है