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मूल नक्षत्र : मूल नक्षत्र में जन्मे लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक (Moola Nakshatra : Moola Nakshatra Me Janme Log Tatha Purush Aur Stri Jatak)

मूल नक्षत्र : मूल नक्षत्र में जन्मे लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक (Moola Nakshatra : Moola Nakshatra Me Janme Log Tatha Purush Aur Stri Jatak)

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वैदिक ज्योतिष में कुल “27 नक्षत्र” है जिनमें से एक है “मूल नक्षत्र” (Moola Nakshatra)। यह आकाश मंडल तथा 27 नक्षत्रों में 19वें स्थान पर है। इस नक्षत्र का विस्तार राशि चक्र में “0000” से लेकर “1320” अंश तक है। मूल नक्षत्र में 11 तारें होते है। “मूल” को “विछतो” भी कहा जाता है। आज हम आपको मूल नक्षत्र में में जन्में लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक की कुछ मुख्य विशेषताएं बतलायेंगे, पर सबसे पहले जानते है, मूल नक्षत्र से जुड़ी कुछ जरुरी बातें :

मूल एक “राजसिक-स्त्री” नक्षत्र है। मूल का शाब्दिक अर्थ है “जड़“। मूल “चंद्रदेव” की 27 पत्नियों में से एक है तथा ये प्रजापति दक्ष की पुत्री है। शास्त्रानुसार, यह शेर के पूंछ की आकार पर लगे नौ तारों का समूह है।

मूल नक्षत्र से जुड़े अन्य जरुरी तथ्य :

  • नक्षत्र – “मूल”
  • मूल नक्षत्र देवता – “निऋति”
  • मूल नक्षत्र स्वामी – “केतु”
  • मूल राशि स्वामी – “बृहस्पति”
  • मूल नक्षत्र राशि – “धनु”
  • मूल नक्षत्र नाड़ी – “आदि”
  • मूल नक्षत्र योनि – “श्वान”
  • मूल नक्षत्र वश्य – “मनुष्य”
  • मूल नक्षत्र स्वभाव – “तीक्ष्ण”
  • मूल नक्षत्र महावैर – “मृग”
  • मूल नक्षत्र गण – “राक्षस”
  • मूल नक्षत्र तत्व – “अग्नि”
  • मूल नक्षत्र पंचशला वेध – “पुनर्वस”

मूल नक्षत्र के जातक जीवन मे आसानी से धन प्राप्त कर लेते है। ये दूसरो की संपत्ति हड़पने में माहिर होते है। ये मूल वस्तुओं से अर्थात – वृक्ष, भूगर्भ, जीव से प्राप्त वस्तुओं द्वारा आजीविका करते है – पाराशर

मूल नक्षत्र का वेद मंत्र :

।।ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त।।
ॐ निॠतये नम:।।

मूल नक्षत्र में चार चरणें होती है। जो इस प्रकार है :

1. मूल नक्षत्र प्रथम चरण : मूल नक्षत्र के प्रथम चरण के स्वामी “मंगल देव” है तथा इस चरण पर मंगल, गुरु और केतु का प्रभाव ज्यादा रहता है। इस चरण के जातक में अध्यात्म, सकारात्मकता और दृढ निश्चय होता है। इस चरण के जातक की आँखें और दांत बहुत सुन्दर होते है। मूल नक्षत्र के जातक स्पष्टवादी, बुद्धिमान और खरी बात करने वाले होते है। ये अहंवादी और भौतिकवादी होते है। ये समाज से मान सम्मान प्राप्त करने वाले है। ये जीवन के मध्य आयु में व्यापार में सफलता हासिल करते है।

2. मूल नक्षत्र द्वितीय चरण : मूल नक्षत्र के द्वितीय चरण के स्वामी ‘‘शुक्र देव” है। इस चरण पर केतु, शुक्र तथा बृहस्पति ग्रह का प्रभाव होता है। इनका मुख्य गुण है – इनमें सृजनता की भावना छिपी होती है। इस चरण के जातक सामान्य और चौड़े कद वाले, चौड़ी ठुड्डी और भारी पैरों वाले होते है। इस चरण के जातक हर प्रकार के कार्य करने में उत्तीर्ण और सफल ज्योतिष होते है। 

3. मूल नक्षत्र तृतीय चरण : इस चरण के स्वामी “बुध ग्रह” है। इस चरण पर केतु, गुरु तथा बुध का प्रभाव होता है। इस चरण के जातक के बौद्धिकता से जुड़ें कर्म करने वाले होते है। इस चरण के जातक सुन्दर आँखों वाले, हास्य कलाकार, अध्यात्म तथा सांसारिक गतिविधियों में संलग्न होते है। इस चरण के जातक प्रवीण तथा अपने सिद्धांतों पर अडिग होते है।

4. मूल नक्षत्र चतुर्थ चरण : इस चरण के स्वामी “चन्द्रमा” है। इस चरण पर केतु, गुरु तथा चन्द्रमा का प्रभाव होता है। इस चरण के जातक गौर वर्ण, गोल नेत्र, सुन्दर केश और बड़े पेट वाले होते है तथा बुद्धिमान और भ्रमणशील भी होते है। इस चरण के जातक भावुक, विद्वान, प्रसन्नचित्त, कठोर निर्णय लेने में असमर्थ होते है। इस चरण के जातकों को अपने संगी साथियों से विश्वासघात मिलता है इसलिए इन्हें हमेशा सावधान रहना चाहिए।

आइये जानते है, मूल नक्षत्र के पुरुष और स्त्री जातकों के बारे में :

मूल नक्षत्र के पुरुष जातक :

इस लग्न के जातक सुगठित देह, चमकीली आंखें, प्रसन्नचित्त वाले होते है। ऐसे जातक शरीफ, आज पर विश्वास करने वाले तथा जीवन का भरपूर आनंद उठाने वाले होते है। ये अपने नियमों पर ही चलते है। ये ईश्वर पर विश्वास करने वाले और भविष्य की चिंता करने वाले होते है। इन्हें भाग्य भरोसे कुछ नहीं मिलता, अपने परिश्रम के बल पर ही ये सब कुछ हासिल करते है।

ये बहुत ख़र्चीले होते है। इस लग्न के जातक विदेश में व्यापार के सिलसिले में जीवन बिताते है। इन्हें जीवनभर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन्हें किसी से भी मदद प्राप्त नहीं होती। इन्हें अपने दाम्पत्य जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में ये सुखद जीवन जीते है।  ये अपने जीवन के 27, 31, 44, 48, 56, 60 वें वर्ष में रोग का शिकार होते है। इन्हें शराब पिने की साफ़ मनाही है।

मूल नक्षत्र के स्त्री जातक :

इस लग्न की जातिका मध्यम वर्णी और पवित्र ह्रदय वाली होती है। ये ईश्वर पर आँख बंद करके विश्वास करती है। यदि इनके साथ कोई धोखा कर दे तो ये उसके प्रति निर्दयी हो जाती है और अपना बदला लेकर ही मानती है। इन्हें अपने दाम्पत्य जीवन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनका विवाह देरी से होता है।

Frequently Asked Questions

1. मूल नक्षत्र के देवता कौन है?

मूल नक्षत्र के देवतानिऋति है।

2. मूल नक्षत्र का स्वामी ग्रह कौन है?

मूल नक्षत्र का स्वामी ग्रह बृहस्पति है।

3. मूल नक्षत्र के लोगों का भाग्योदय कब होता है?

मूल नक्षत्र के लोगों का भाग्योदय27 से 33 वें वर्ष में होता है।

4. मूल नक्षत्र की शुभ दिशा कौन सी है?

मूल नक्षत्र की शुभ दिशादक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) है।

5. मूल नक्षत्र का कौन सा गण है?

मूल नक्षत्र का राक्षस गण है।

6. मूल नक्षत्र की योनि क्या है?

मूल नक्षत्र की योनि – श्वान है।

7. मूल नक्षत्र की वश्य क्या है?

मूल नक्षत्र की वश्य –मनुष्य है।