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भद्रा काल : कौन से कार्य शुभ कौन से अशुभ तथा भद्रा का तीनो लोको में वास (Bhadra Kaal : Kaun Se Karya Shubh Kaun Se Ashubh Tatha Bhadra Ka Tino Loko Me Vaas)

भद्रा काल : कौन से कार्य शुभ कौन से अशुभ तथा भद्रा का तीनो लोको में वास (Bhadra Kaal : Kaun Se Karya Shubh Kaun Se Ashubh Tatha Bhadra Ka Tino Loko Me Vaas)

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वैदिक ज्योतिष तथा पुरानी हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक ऐसी तिथि भी है जिसे लोग अशुभ मानते है तथा उस तिथि में कोई भी शुभ कार्य को करना वर्जित माना जाता है और उस तिथि का नाम है “भद्रा“। भद्रा काल को इतना अशुभ माना जाता है की अच्छे और शुभ कार्य के फल का परिणाम भी महा-अशुभ हो जाता है। भद्रा के विषय में मुहूर्त मार्तण्ड में यह श्लोक लिखी गयी है :

।। ईयं भद्रा शुभकार्येषु अशुभा भवत।।

इस श्लोक का अर्थ है कि ” भद्रा काल में किये गए शुभ कार्य भी अशुभ फल ही देते है “

इतना ही नहीं, प्रजापति दक्ष के जमाता महर्षि कश्यप ने भी भद्रा काल को अशुभ और पीड़ा दायक बताया है। 

।।न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।।
।।कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।।

इस श्लोक का अर्थ है कि “यदि कोई इंसान भद्रा काल में मंगल कार्य करता है तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा इसलिए यदि कोई मनुष्य अपनी जिंदगी को सही तरह से और खुशनुमा व्यतीत करना चाहता है तो भूल से भी भद्रा काल में कोई भी मांगलिक कार्य ना करे “।

आइये जानते है, भद्रा या भद्रा काल क्या है?

हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले पंचांग देखा जाता है क्योंकि हिन्दू धर्म में मुहूर्त का अपना एक अलग और विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग में प्रत्येक दिन के समय को निश्चित काल अथवा भागों में बाटा गया है जो निम्नलिखित है :

  • तिथि
  • वार
  • नक्षत्र
  • योग
  • करण

हिन्दू पंचांग का 5वा भाग “करण” कहलाता है तथा किसी भी तिथि के पहले अर्थ भाग को “प्रथम करण और दूसरे भाग को “द्वितीय करण” कहते है और जब भी “तिथि” विचार में “विष्ट” नामक करण आता है तब उस विशेष काल को “भद्रा” के नाम से सम्बोधित करते है। भद्रा नामक करण का ज्योतिष में विशेष महत्व है।    

भद्रा कब से कब तक होती है ?

हिन्दू धर्म के लोगों के मन में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले एक सवाल हमेशा घूमता है वह है भद्रा कब से कब तक है?“। वैसे तो प्रत्येक महीने में 2 पक्ष होते है। प्रत्येक माह के एक पक्ष में भद्रा की चार बार पुनरावृति होती है। जैसे की – शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि तथा पूर्णिमा के पूर्वार्द्ध में भद्रा काल होती है तथा चतुर्थी और एकादशी के उत्तरार्ध में भी भद्रा काल होती है। कृष्ण पक्ष की भद्रा त्रितय तथा दशमी के उत्तरार्ध में तथा सप्तमी और चतुर्दशी तिथि के पूर्वार्द्ध में होती है । 

भद्रा काल में कौनकौन से कार्य नहीं करनी चाहिए ?

भूल से भी भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य अथवा मांगलिक कार्य ना करे। यदि आप शुभ कार्य करते है, तो आपको बुरे परिणाम ही मिलेंगे। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भद्रा काल में निम्नलिखित कार्यों को न करे :

  • गृह-प्रवेश
  • मुण्डन संस्कार
  • विवाह संस्कार
  • रक्षाबंधन
  • शुभ यात्रा
  • नयी व्यवसाय को प्रारम्भ करना

भद्रा काल में कौनकौन से कार्य करनी चाहिए ?

भद्रा काल में शुभ कार्यों को करने की मनाही है परन्तु वो कार्य जिन्हें करना आवश्यक है तथा जो अशुभ है उन्हें भद्रा काल में अवश्य करे। हिन्दू मान्यता अनुसार भद्रा काल में अशुभ कार्य करने से अशुभता नष्ट हो जाती है और सही परिणाम मिलते है। आइये जानते है भद्रा काल में किये जाने वाले कार्य :

  • मुकदमे संबंधित कार्य,
  • युद्ध करना
  • ऑपरेशन करना
  • शत्रु का दमन करना
  • अग्नि कार्य
  • विवाद संबंधी काम
  • शस्त्रों का उपयोग

भद्रा कब और कहाँ वास करती है?

सनातन धर्म के एक पौराणिक ग्रन्थ “मुहूर्त चिन्तामणि” में राशि के हिसाब से भद्रा के वास स्थान की बात कही गयी है, जैसे की :

  • भद्रा का वास पृथ्वी अर्थात मृत्युलोक – चंद्रमा जब भी कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि या फिर मीन राशि में हो। 
  • भद्रा का वास स्वर्गलोक – चंद्रमा जब भी मेष राशि, वृष राशि, मिथुन राशि तथा वृश्चिक राशि में हो।
  • भद्रा का वास पाताल लोक – चंद्रमा जब भी कन्या राशि, तुला राशि, धनु राशि या मकर राशि में हो।

भद्रा जिस समय तीन लोकों में से जिस भी लोक में रहेगी, उसी लोक पर भद्रा का विशेष रूप से प्रभाव रहेगा इसलिए जब भी चन्द्रमा कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि या फिर मीन राशि में हो तब भद्रा का वास पृथ्वी अर्थात मृत्युलोक में होगा और भद्रा का पूरा प्रभाव पृथ्वी लोक पर ही होगा और भद्रा का पृथ्वी पर होने से भद्रा विशेष रूप से कष्टकारी होगी।     

भद्रा जब स्वर्गलोक या पाताल लोक में होगी तब भद्रा शुभ फलदायी होगी। संस्कृत के एक ग्रंथ पीयूषधारा में एक श्लोक लिखी गयी है जो इस प्रकार है :

।।स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले धनागम।।
।।मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी।।

अर्थात : भद्रा जब भी स्वर्ग में वास करेगी तो वह शुभ फलदायिनी होगी तथा भद्रा जब भी पाताल लोक में वास करेगी तो भद्रा धनदायक होगी परन्तु भद्रा जब भी पृथ्वी लोक में वास करेगी तब वो विनाशकारी होगी ।

स्वर्ग, पाताल और पृथ्वीलोक के लिए भद्रा के विषय में मुहूर्त मार्तण्ड में यह श्लोक लिखी गयी है :

।।स्थिताभूर्लोख़्या भद्रा सदात्याज्या स्वर्गपातालगा शुभा।।

अर्थात : भद्रा जब भी स्वर्गलोक या पाताल लोक में वास करेगी तो वह शुभ फलदायिनी होगी यानी चंद्रमा जब भी मेष राशि, वृष राशि, मिथुन राशि, वृश्चिक राशि, कन्या राशि, तुला राशि, धनु राशि या मकर राशि में हो, तब भद्रा शुभ फलदायिनी होगी ।

Frequently Asked Questions

1. भद्रा कौन है?

भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री तथा भगवान शनि देव की बहन है।

2. भद्रा का पृथ्वी लोक में होने से कैसा फल होगा?

भद्रा का पृथ्वी लोक में होने से अशुभ फल अथवा परिणाम मिलेंगे।

3. भद्रा का स्वर्ग लोक में होने से कैसा फल होगा?

भद्रा का स्वर्ग लोक में होने से शुभ फल अथवा परिणाम मिलेंगे।

4. भद्रा का पाताल लोक में होने से कैसा फल होगा?

भद्रा का पाताल लोक में होने से शुभ फल अथवा परिणाम मिलेंगे।