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गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा | Ganesh Chaturthi Vrat katha |  Free PDF Download

गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा | Ganesh Chaturthi Vrat katha | Free PDF Download

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गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
( Ganesh Chaturthi Vrat Katha)

प्रत्येक व्रत के तरह गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत का अपना एक अलग ही महत्व और महिमा है। कहते है यदि आप गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत कर रहे है तो व्रत के साथ व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा अवश्य पढ़े या सुने, इस कथा को पढ़ने तथा सुनने मात्रा से आपकी हर मनोकामना क्षण भर में पूर्ण हो जाएगी। आज हम आपको गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा बतायेंगे। तो, आइये शुरू करते है गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा:

यह कथा भगवान नारायण के विवाह की एक घटना से जुड़ी हुई है। तो कहिये,

“गजानन भगवान” की “जय”

“भगवान नारायण” की “जय”

एक बार की बात है जब भगवान नारायण का विवाह देवी लक्ष्मी के साथ तय हुआ। इस विवाह की तैयारी जोरो-शोरो के साथ शुरू हुई। भगवान नारायण और देवी लक्ष्मी के विवाह में उपस्थित होने के लिए सभी देव तथा देवियों को निमंत्रण भेजा गया परन्तु भगवान गजानन अर्थात भगवान गणेश जी को निमंत्रण नहीं भेजा गया। विवाह की तैयारी हो जाने के बाद समय आया बारात देवी लक्ष्मी के घर लेकर जाने का, बारात लेकर जाने के ठीक आगे सभी देवता गण अपनी पत्नियों तथा परिवार के साथ बारात में आ पहुंचे और सबने गौर किया की सारे देवता, देवियां तथा उनके परिवार तो आ गये परन्तु इस मंगल कार्य में कहीं भी भगवान गजानन जी नहीं दिख रहे। यह देख सभी देवता गण आश्चर्य चकित रह गए। और फिर सब भगवान नारायण के समक्ष गए और भगवान गजानन की अनुपस्थति का कारण पूछने लगे।  

भगवान नारायण से प्रश्न पूछे जाने पर उन्होंने कह दिया कि मैंने तो भगवान गजानन के पिता भगवान महादेव को इस विवाह में सहकुटुंब शामिल होने का निमंत्रण देकर आया हूँ।  और यदि गजानन अपने पिता भोलेनाथ के साथ आना चाहते तो अवश्य आ चुके होते और उन्हें अलग से विवाह का निमंत्रण देने का कोई अर्थ ही नहीं दिखा। अपने बातों को कहते समय भगवान नारायण ने व्यंग में कहा कि “भगवान गजानन से जुड़ी दूसरी बात यह है कि गजानन जी को एक ही दिन में भोजन में मुंग- सवा मन, चावल- सवा मन, घी- सवा मन तथा लड्डू- सवा मन चाहिए होता है। अगर गजानन जी नहीं आएंगे तो अच्छी बात है आखिर किसी और के घर जाकर इतना सारा भोजन करना अच्छा भी तो नहीं लगता। 

इतनी बातें हुई ही थी कि कुछ देवों ने अवसर का लाभ उठाया और व्यंग करने लगे। और इसी बिच एक देव ने अपने मन की बात कह डाली की यदि गजानन जी यहाँ आ भी जायें तो उन्हें हम यह कह देंगे की आप यहीं द्वारपाल बन कर रह जाइये और इस घर का ध्यान रखियेगा। साथ ही यह भी कह दिया की हम गजानन से कह देंगे की आप तो मूषक की सवारी करते हो यदि आप बारात में जाएंगे तो आपका मूषक बहुत धीरे-धीरे चलता है और आप भी उसपर बैठकर धीरे-धीरे आएंगे तो आप बारात से बहुत पीछे ही रह जाएंगे। यह सुझाव सभी देवतागण को अच्छा लगा और यह सुनकर सभी देवतागण  ने अपनी-अपनी हामी भरी साथ ही साथ भगवान नारायण ने भी सहमति से अपना सिर हिला दिया। 

सारी बातें अभी चल ही रही थी कि, सँयोगवश वहाँ गजानन जी पधारे, परन्तु सबने भोले-भाले गजानन महाराज को बहला फुसलाकर घर की रखवाली करने के लिए द्वारपाल बना डाला और गजानन को घर के पास ही छोड़ कर सभी देव-देवी और उनके परिवार बारात लेकर चले गए। सँयोगवश नारदमुनि ने गजानन भगवान को दरवाजे पर बैठे द्वारपाल के रूप में देख लिया। नारदमुनि से गजानन भगवान की यह दशा देखि नहीं गयी, नारदमुनि भगवान गजानन के पास गए और उनकी इस दशा तथा दरवाजे के पास ही रुकने का कारण पूछे।  

भगवान गजानन ने अपनी सारी आपबीती नारदमुनि से कह डाली और उन्होंने कहा की भगवान नारायण ने मेरा अपमान किया है, उन्होंने मुझे निमंत्रण नहीं भेजा तथा मुझे यहाँ द्वारपाल बनाकर दरवाजे पर ही छोड़ कर सब चले गए। नारदमुनि जी को गजानन भगवान की बात सुनकर उनके लिए बहुत बुरा लगा तब नारदमुनि जी ने एक तरकीब सोची और उन्होंने गजानन भगवान से कहा कि आप अपनी मूषक सेना को बारात जिधर जा रही है उनसे भी आगे भेज दे, आपकी मूषक सेना बारात से आगे जाकर सारे रास्ते को खोद डालेगी जिससे की उनके वाहन के पहिये धरती में धंस जायेंगे जिसके बाद उन सब देवी-देवताओं को आपको वहाँ सम्मानपूर्वक बुलाना ही पड़ेगा, उनके सामने और कोई भी रास्ता नहीं बचेगा।  नारदमुनि की बात सुनकर गजानन भगवान ने अपनी मूषक सेना को अपने कार्य सिद्धि हेतु तुरंत जाने की अनुमति दे डाली। गजानन भगवान के कहे अनुसार उनके सारे मूषकों ने जाकर रास्तो को जमीन के निचे से कुरेद डाला जिससे कि जब बारात वहाँ पहुंची तो सभी के वाहनों के पहियें धरती में ही धंस गए। सबने लाख कोशिश की पर वाहनों के पहियें निकलने का नाम ही नहीं ले रहें थे और उसे निकालने के कोशिश में पहियें टूट ही गए। किसी भी देवतागण को अब कुछ समझ नहीं आ रहा था की अब पहियें निकलेंगे कैसे। इतने में वहाँ नारदमुनि आ पहुंचे और नारदमुनि ने सबसे कहा कि आप सभी देवता गण ने भगवान गजानन का अपमान किया है, यह आप सब ने अच्छा नहीं किया। यदि आप सब उनसे क्षमा याचना करके उन्हें मना कर यहाँ ले आये तो सारी रुकावट टल जायेगी और पहियें भी आराम से बाहर निकल जाएंगे।  नारदमुनि की बात सुनकर भगवान भोलेनाथ ने नंदी जी को आज्ञा दी की वो जाकर गजानन भगवान को बुला लाएं। नंदी जी गजानन भगवान को मना कर बारात में वापस ले आये, वहाँ सबने गजानन भगवान की पूजा अर्चना की जिससे की सबको गजानन भगवान का आशीर्वाद मिला और वाहनों के पहियें आराम से धरती से बाहर निकल गए। परन्तु पहियें तो निकल गए पर वो अब काफी बुरे तरह से टूटे हुए थे, अब उन पहियों को कौन ठीक करेगा?

पास ही में एक खाती खेत में काम कर रहा था। देवताओं ने खाती को बुलाया, पहियों को ठीक करने के लिए। खाती पहियों को ठीक करने से पहले हाथ जोड़कर  “ॐ श्री गणेशाय नमः” कहकर मन ही मन गजानन भगवान की वंदना करते हुए सारे पहियों की ठीक कर दिया। तब खाती ने देवताओं से कहा, आप लोगो ने अवश्य गजानन भगवान की पूजा अर्चना नहीं की तभी आपके मार्ग में इतने संकट आये, हम तो मानव, मुर्ख और अज्ञानी है, फिर भी गजानन भगवान की पूजा करके ही कोई कार्य शुरू करते है आप सब तो देवतागण है आपसे यह भूल कैसे संभव है?” अबसे, आप सब भी गजानन भगवान की जय बोलकर अपने कार्य पर जायें तो आपके कार्य भी अवश्य बनेंगे और सारे संकट भी टल जाएंगे। खाती की बात सुनकर सबने गजानन भगवान से क्षमा-याचना की और फिर बारात वहाँ से प्रस्थान कर गई तथा बिना किसी बाधा के भगवान नारायण तथा देवी लक्ष्मी का विवाह सम्पन्न हुआ और विवाह के पश्चात सभी वापस सकुशल घर लौट आयें। इसीलिए विनती करते है कि हे गजानन महाराज “आपने जैसे नारायण के कार्य जैसे सफल किये वैसे ही हमारे कार्यों को भी सफल और सिद्ध करें” तो बोलिये, ॐ श्री गजानन भगवान की जय!