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आरती श्री गुरुदेव जी की गाऊँ ।बार-बार चरणन सिर नाऊँ ॥
त्रिभुवन महिमा गुरु जी की भारी ।ब्रह्मा विष्णु जपे त्रिपुरारी ॥
राम कृष्ण भी बने पुजारी ।आशीर्वाद में गुरु जी को पाऊं ॥
भव निधि तारण हार खिवैया ।भक्तों के प्रभु पार लगैया ॥
भंवर बीच घूमे मेरी नैया ।बार बार प्रभु शीष नवाऊँ ॥
ज्ञान दृष्टि प्रभु मो को दीजै ।माया जनित दुख हर लीजै ॥
ज्ञान भानु प्रकाश करीजै ।आवागमन को दुख नहीं पाऊं ॥
राम नाम प्रभु मोहि लखायो ।रूप चतुर्भुज हिय दर्शायो ॥
नाद बिंदु पुनि ज्योति लखायो ।अखंड ध्यान में गुरु जी को पाऊँ ॥
जय जयकार गुरु उपनायों ।भव मोचन गुरु नाम कहायो ॥श्री माताजी ने अमृत पायो ।