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रामायण महाभारत : महाभारत में श्री राम के दर्शन (Ramayan Mahabharat: Mahabharat Me Shree Ram Ke Darshan)

रामायण महाभारत : महाभारत में श्री राम के दर्शन (Ramayan Mahabharat: Mahabharat Me Shree Ram Ke Darshan)

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महाभारत में गीता की व्याख्या तो आपको आसानी से मिल जाएगी, इसबारे में आपने सुना भी होगा पर भगवान श्री राम की कथा महाभारत में क्या आपने सुना है? बहुत ही अटपटा सा है सुनने में रामायण महाभारत, दोनों एक साथ। हम ये तो जानते है की श्री कृष्ण ने करुक्षेत्र में खुद को भगवान साबित किया था और अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था पर महाभारत में रामायण और श्री राम के दर्शन कहाँ से आया? तो, चलिए इस बारे में विस्तार से जानते है,

श्री राम और श्री कृष्ण, भगवान विष्णु के ही 24 अवतारों में से 2 अवतार थे। जहाँ एक ओर “महाभारत” अर्थात जय सहिंता महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाकाव्य है जिसमें श्री कृष्ण के द्वारा धर्म की स्थापना का उल्लेख है और वही दूसरी ओर रामायण, महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य है जिसमें प्रभु श्री राम द्वारा किये गए सत्कर्मों का उल्लेख है। त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने श्री राम का अवतार लिया तथा द्वापरयुग में श्री कृष्ण का अवतार लिया इसलिए श्री राम का अवतार भगवान विष्णु ने पहले लिया और इसी कारण महाभारत में रामायण का और प्रभु श्री राम का उल्लेख है। 

महाभारत में रामायण कथा का 4 जगहों पर वर्णन है। जिसमें रामोपाख्यान (Ramopakhyaan) सबसे विस्तार रूप से उल्लेखित है। रामायण के इन 4 कथाओं के अतिरिक्त रामायण के पात्रों का महाभारत में और भी 50 जगह पर उल्लेख किया गया है।   

महाभारत के “आरण्यक पर्व” में “’रामोपाख्यान‘” के साथ-साथ एक रामकथा और उद्धृत है। महाभारत में जब भीम, हनुमान जी के पास शिक्षा लेने जाते है तब भीम और हनुमान संवाद के अंतर्गत हनुमान जी ने मात्रा 11 श्लोको में राम वनवास, सीताहरण, रावणवध तथा श्री राम जी के अयोध्या लौटने की कथा को बहुत ही संक्षेप तथा सरल ढंग से भीम को बतलाते है। इस संवाद में रामावतार तथा उनका 11 हजार वर्षो तक राज करने का वर्णन है परन्तु इसमें कही भी लंका दहन तथा माता सीता की अग्नि परीक्षा का उल्लेख नहीं है ।

अगर हम बात करे, “शांतिपर्व” तथा “द्रोणपर्व” की रामकथा षोडशराजोपाख्यान अर्थात 16  राजाओं की कथा के अंतर्गत सम्मिलित है। पुत्र के मृत्यु से आहात संजय को सांत्वना देने के लिए नारद मुनि ने उन्हें 16 राजाओं की कहानी सुनाई थी। ये सभी राजा बहुत ही महान थे और सभी का जीवन काल पूर्ण होने पर, वो सब मृत्यु को प्राप्त हो गए। 

इन्हीं 16 राजाओं में एक श्री राम भी थे। “अयोध्याकाण्ड” से लेकर “युद्धकाण्ड” के समाप्ति तक की रामकथा का वर्णन करते है यहाँ नारद मुनि। इसमें श्री राम कथा के जगह पर रामराज्य की समृद्धि तथा श्री राम की महिमा को अधिक मान्यता दी गई है। इसमें श्री रामचंद्र जी का राज अभिषेक, श्री राम के गुणों को दर्शाना, श्री रामराज्य में पापियों का आभाव, श्री राम का 11 हजार वर्षों तक शासन करना तथा श्री राम जीवन के अंत में देवलोक चले गए, इन सब का वर्णन किया गया है। प्रभु श्री राम की इस कथा में न तो “बालकाण्ड” और ना ही “उत्तरकाण्ड” बताया गया और ना ही माता सीता की अग्निपरीक्षा का वर्णन किया गया। प्रभु श्री राम को मनुष्यों, ऋषियों, देवताओं तथा समस्त प्राणी जगत में श्रेष्ठ माना जाता है, परन्तु तब भी, श्री रामचंद्र के इस अवतार का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है।   

अगर हम बात करे, “शांतिपर्व” तथा “द्रोणपर्व” की तो दोनों की ही श्री राम कथा समान है। परन्तु इसमें श्री कृष्ण सम्राट युधिष्ठिर को “षोडशराजोपाख्यान” का ज्ञान देते है। शांतिपर्व में श्री रामकथा से जुडी बातें नहीं के बराबर है। इसमें सिर्फ रामराज तथा राम की महिमा का ही वर्णन किया गया है। शांतिपर्व, द्रोणपर्व में श्रीरामकथा का उल्लेख नहीं के बराबर है परन्तु वनपर्व के 3 स्थलों पर ही रामावतार का वर्णन है। गदाधारी भीम-हनुमान के बिच होने वाले संवाद में हनुमान जी कहते है:  

||दाशरथिर्वीरो रामनामो महाबल:|

||विष्णुर्मानुष्यरूपेण चचार वसुधामिमाम||

भगवान विष्णु शांतिपर्व में अपने अवतारों का वर्णन इस प्रकार करते है:

||संधौ तु समनुप्राप्ते त्रेतायां द्वापरस्य च। रामो दाशरथिर्भूत्वा भविष्यामि जगत्पति||

श्री राम कथा का उल्लेख स्वर्गारोहणपर्व में भी मिलेगा जो कि इस प्रकार है:

||वेदे रामायणे पुण्ये भारते भरतर्षभ। आदौ चान्ते मध्ये हरि: सर्वत्र गीयते||

महाभारत में सबसे विस्तृत और मत्वपूर्ण ढंग से रामोपाख्यान का उल्लेख किया गया है। अरण्यकपर्व में एक प्रसंग इस प्रकार दिया गया है – जब जयद्रथ ने द्रौपदी को हरण कर बंदी बना लिया उसके बाद वापस सम्राट युधिष्ठिर द्रौपदी को प्राप्त कर लेते है परन्तु वो अपने दुर्भाग्य पर शोक भी प्रकट करते है, जो कि इस प्रकार कही गयी है:

||अस्ति नूनं मया कश्चिदल्पभाग्यतरो नर:||

अर्थात क्या मुझसे भी कोई अभागा है यहाँ? इसी बात पर महर्षि मार्कण्डेय जी युधिष्ठिर को प्रभु श्री रामचंद्र जी का उदाहरण देते है और युधिष्ठिर का साहस बनाये रखने का प्रयास भी करते है। जब सम्राट युधिष्ठिर रामचरित“(Ramcharit) सुनने की इच्छा जताते है तब महर्षि मार्कण्डेय उन्हें रामोपाख्यान सुनाते है। इस रामचरित में 704 श्लोक सम्मिलित है। वैसे तो वाल्मीकि रामायण ही मुख्य आधार है रामोपाख्यान का फिर भी इन दोनों के बिच भिन्नता है। तो, आइये जानते है वाल्मीकि रामायण के कुछ काण्ड के अनुसार वो खास विभिन्नताएं :

बालकाण्ड (BalKand) रामोपाख्यान में सिर्फ कुछ प्रसंगों के ही उल्लेख मिलेंगे – श्री रामचंद्र का जन्म किन्तु, पुत्रेष्टि यज्ञ और पायस का वर्णन कहीं भी नहीं मिलेगा। सारे देवता, ब्रह्मर्षि इत्यादि रावण से भय पाकर ब्रह्म देव की शरण में आ जाते है और ब्रह्म देव रामावतार के रहस्य से पर्दा उठाते है। श्री राम समेत उनके भाइयों की शिक्षा तथा उनके विवाह, परन्तु सीता जी के अलावा अन्य किसी भी भाई के पत्नी का नाम तक नहीं मिलता।   

अयोध्याकाण्ड (Ayodhyakand) – इसमें अत्रि तथा गुह से जुडी कोई भी बात नहीं लिखी। कैकयी को सिर्फ एक ही वरदान प्राप्त था और मंथरा के बारे में कहा गया था कि वो गंधर्वी अवतार थी जो श्री राम को वनवास दिलाने ही आयी थी। 

अरण्यकाण्ड (Aranyakand) – इसमें कहीं भी शबरी, विराध, अगस्तय, सुतीक्ष्ण तथा अयोमुखी का उल्लेख नहीं किया गया है। 

किष्किंधाकाण्ड (Kishikindhakand) – इसमें राम और सुग्रीव के बिच की मैत्री, बाली-वध, वानर सेना को चारो दिशाओं के ओर भेजने तथा दक्षिण दिशा को छोड़कर सिर्फ 3 दिशा से वापस आने का उल्लेख है। लेकिन, इसमें श्री राम के शक्ति की परीक्षा नहीं ली जाती सुग्रीव के साथ मित्रता करवाकर। बाली तथा सुग्रीव के मध्य भी सिर्फ एक ही द्वंदयुद्ध का उल्लेख है।  

सुन्दरकाण्ड (Sundarkand) – इसमें रामोपाख्यान के रचियता स्वयं नहीं कहते है, हनुमान जी तथा उनके साथियों के वापस लौटने का वृतान्त बल्कि हनुमान जी श्री राम के पास आकर सुनाते है। अविंध्य का महत्त्व अधिक है रामोपाख्यान में ।  

युद्धकाण्ड (Yuddhkand) – रावण-सभा, रावण का मायामय सिर, रावण सुग्रीव के मध्य युद्ध इत्यादि, इन सबका ही रामोपाख्यान में उल्लेख नहीं है। सेतुबंध के निर्माण के समय श्रीराम के स्वप्न में समुन्द्र दर्शन देकर सहायता के लिए प्रतिज्ञा करता है। श्री राम का समुन्द्र पर वान चलाने का उल्लेख भी नहीं है। इसमें कही भी लक्ष्मण के शक्ति का भी उल्लेख नहीं है।

उत्तरकाण्ड (Uttarkand) – रामोपाख्यान में श्री राम के अयोध्या वापस आने से लेकर तथा उनके राज्याभिषेक होने का उल्लेख है, लेकिन उत्तरकाण्ड से जुडी कुछ बातों का उल्लेख रामोपाख्यान के शुरुवात में है। रावण का वंश तथा रावण के भाइयों की तपस्या और वरदान प्राप्ति, वैश्रावण की पराजय और रावण का पुष्कर पर विजय प्राप्त करने का उल्लेख है। 

Frequently Asked Questions

1. भगवान विष्णु के कितने अवतार थे?

भगवान विष्णु के 24 अवतार थे।

2. महाभारत के रचनाकार कौन थे?

महाभारत के रचनाकार वेदव्यास जी थे।

3. श्री राम का जन्म कौन से युग में हुआ?

श्री राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ।

4. श्री कृष्ण का जन्म किस युग में हुआ?

श्री कृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ।

5. श्री कृष्ण ने षोडशराजोपाख्यान का ज्ञान किसे दिया?

श्री कृष्ण ने षोडशराजोपाख्यान का ज्ञान सम्राट युधिष्ठिर को दिया।