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Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 25 to 30 ||

Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 25 to 30 ||

॥ दोहा 25 ॥

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास,अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।

हिंदी अर्थ – उस समय भगवान की प्रेरणा से उन चासो पवन बहने लगे और हनुमान जी ने अपना स्वरूप ऐसा बढ़ाया कि वह आकाश में जा लगा फिर अट्टहास करके बड़े जोर से गरजे ॥25॥

हनुमानजी ने लंका जलाई

॥ चौपाई ॥

देह बिसाल परम हरुआई।
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला।
झपट लपट बहु कोटि कराला॥

हिंदी अर्थ – यद्यपि हनुमानजी का शरीर बहुत बड़ा था परंतु शरीर में बड़ी फुर्ती थी जिससे वह एक घरसे दूसरे घर पर चढ़ते चले जाते थे॥
जिससे तमाम नगर जल गया। लोग सब बेहाल हो गये और झपट कर बहुत से विकराल कोटपर चढ़ गये॥

तात मातु हा सुनिअ पुकारा।
एहिं अवसर को हमहि उबारा॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई।
बानर रूप धरें सुर कोई॥

हिंदी अर्थ – और सब लोग पुकारने लगे कि हे तात! हे माता! अब इस समय में हमें कौन बचाएगा॥
हमने जो कहा था कि यह वानर नहीं है, कोई देव वानर का रूप धरकर आया है। सो देख लीजिये यह बात ऐसी ही है॥

साधु अवग्या कर फलु ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥

हिंदी अर्थ – और यह नगर जो अनाथ के नगर के समान जला है सो तो साधु पुरुषों का अपमान करनें का फल ऐसा ही हुआ करता है॥
तुलसी दास जी कहते हैं कि हनुमान जी ने एक क्षणभर में तमाम नगर को जला दिया l केवल एक बिभीषणके घर को नहीं जलाया॥

ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा।
जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥

हिंदी अर्थ – महादेव जी कहते है कि हे पार्वती! जिसने इस अग्रिको पैदा किया है उस परमेश्वर का बिभीषण भक्त था इस कारण से उसका घर नहीं जला॥ हनुमान जी ने उलट पलट कर (एक ओर से दूसरी ओर तक) तमाम लंका को जला कर फिर समुद्र के अंदर कूद पडे॥

पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि ॥26॥

हिंदी अर्थ – अपनी पूछ को बुझाकर, श्रमको मिटाकर (थकावट दूर करके), फिर से छोटा स्वरूप धारण करके हनुमान जी हाथ जोड़कर सीताजी के आगे आ खडे हुए ॥26॥

हनुमानजी लंकासे लौटने से पहले सीताजी से मिले

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा।
जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ।
हरष समेत पवनसुत लयऊ॥

हिंदी अर्थ – और बोले कि हे माता! जैसे रामचन्द्रजी ने मुझको पहचान के लिये मुद्रिका का निशान दिया था, वैसे ही आप भी मुझ को कुछ चिन्ह दो॥
तब सीताजी ने अपने सिरसे उतार कर चूडामणि दिया। हनुमानजी ने बड़े आनंद के साथ वह ले लिया॥

कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ सम संकट भारी॥

हिंदी अर्थ – सीताजी ने हनुमानजी से कहा कि हे पुत्र! मेरा प्रणाम कह कर प्रभुसे ऐसे कहना कि हे प्रभु! यद्यपि आप सर्व प्रकार से पूर्ण काम हो (आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है)॥
हे नाथ! आप दीनदयाल हो, इसलिये अपने विरद को सँभाल कर (दीन दुःखियों पर दया करना आपका विरद है, सो उस विरद को याद करके) मेरे इस महा संकटको दूर करो॥

तात सक्रसुत कथा सनाएहु।
बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥
मास दिवस महुँ नाथु न आवा।
तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥

हिंदी अर्थ – हे पुत्र । फिर इन्द्र के पुत्र जयंत की कथा सुनाकर प्रभु कों बाणों का प्रताप समझाकर याद दिलाना॥
और कहना कि हे नाथ! जो आप एक महीनेके अन्दर नहीं पधारोगे तो फिर आप मुझको जीती नहीं पाएँगे॥

कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना।
तुम्हहू तात कहत अब जाना॥
तोहि देखि सीतलि भइ छाती।
पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती॥

हिंदी अर्थ – हे तात! कहना, अब मैं अपने प्राणों को किस प्रकार रखूँ? क्योंकि तुम भी अब जाने को कह रहे हो॥
तुमको देखकर मेरी छाती ठंढी हुई थी परंतु अब तो फिर मेरे लिए वही दिन हैं और वही रातें हैं॥

जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह ॥27॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी ने सीताजी को (जानकी को) अनेक प्रकार से समझाकर कई तरहसे धीरज दिया और फिर उनके चरण कमलों में सिर नमाकर वहां से रामचन्द्रजी के पास रवाना हुए ॥27॥

हनुमानजी का लंका से वापिस लौटना

चलत महाधुनि गर्जेसि भारी।
गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा।
सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥

हिंदी अर्थ – जाते समय हनुमानजी ने ऐसी भारी गर्जना की, कि जिसको सुनकर राक्षसियों के गर्भ गिर गये॥
सपुद्र को लांघकर हनुमानजी समुद्र के इस पार आए। और उस समय उन्होंने किलकिला शब्द (हर्षध्वनि) सब बन्दरों को सुनाया॥

(राका दिन पहूँचेउ हनुमन्ता।
धाय धाय कापी मिले तुरन्ता॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी ने लंकासे लौटकर कार्तिक की पूर्णिमा के दिन वहां पहुंचे। उस समय दौड़ दौड़ कर वानर बडी त्वराके साथ हनुमानजी से मिले॥)

हरषे सब बिलोकि हनुमाना।
नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा।
कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी को देखकर सब वानर बहुत प्रसन्न हुए और उस समय वानरों ने अपना नया जन्म समझा॥
हुनमानजी का मुख अति प्रसन्न और शरीर तेज से अत्यंत दैदीप्यमान देखकर वानरों ने जान लिया कि हनुमानजी रामचन्द्रजी का कार्य करके आए है॥

मिले सकल अति भए सुखारी।
तलफत मीन पाव जिमि बारी॥
चले हरषि रघुनायक पासा।
पूँछत कहत नवल इतिहासा॥

हिंदी अर्थ – और इसी से सब वानर परम प्रेम के साथ हनुमानजी से मिले और अत्यन्त प्रसन्न हुए। वे कैसे प्रसन्न हुए सो कहते हैं कि मानो तड़पती हुई मछली को पानी मिल गया॥
फिर वे सब सुन्दर इतिहास पूंछते हुए आर कहते हुए आनंद के साथ रामचन्द्रजी के पास चले॥

तब मधुबन भीतर सब आए।
अंगद संमत मधु फल खाए॥
रखवारे जब बरजन लागे।
मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥

हिंदी अर्थ – फिर उन सबों ने मधुवन के अन्दर आकर युवराज अंगद के साथ वहां मीठे फल खाये॥
जब वहांके पहरे दार बरजने लगे तब उनको मुक्को से ऐसा मारा कि वे सब वहां से भाग गये॥

जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।
सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज ॥28॥

हिंदी अर्थ – वहां से जो वानर भाग कर बचे थे उन सबों ने जाकर राजा सुग्रीव से कहा कि हे राजा! युवराज अंगदने वन का सत्यानाश कर दिया है। यह समाचार सुनकर सुग्रीव को बड़ा आनंद आया कि वे लोग प्रभु का काम करके आए हैं ॥28॥

हनुमानजी सुग्रीव से मिले

जौं न होति सीता सुधि पाई।
मधुबन के फल सकहिं कि खाई॥
एहि बिधि मन बिचार कर राजा।
आइ गए कपि सहित समाजा॥

हिंदी अर्थ – सुग्रीव को आनंद क्यों हुआ? उसका कारण कहते हैं। सुग्रीव ने मन में विचार किया कि जो उनको सीताजी की खबर नहीं मिली होती तो वे लोग मधुवन के फल कदापि नहीं खाते॥
राजा सुग्रीव इस तरह मनमें विचार कर रहे थे। इतने में समाज के साथ वे तमाम वानर बहां चले आये॥

आइ सबन्हि नावा पद सीसा।
मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा॥
पूँछी कुसल कुसल पद देखी।
राम कृपाँ भा काजु बिसेषी॥

हिंदी अर्थ – सबने आकर सुग्रीव के चरणों में सिर नवाया। और आकर उन सभी ने नमस्कार किया तब बड़े प्यार के साथ सुग्रीव उन सबसे मिले॥
सुग्रीव ने सभी से कुशल पूंछा तब उन्होंने कहा कि नाथ! आपके चरण कुशल देखकर हम कुशल हैं और जो यह काम बना है सो केवल रामचन्द्रजी की कृपासे बना है॥

नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना।
राखे सकल कपिन्ह के प्राना॥
सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ।
कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ॥

हिंदी अर्थ – हे नाथ! यह काम हनुमानजी ने किया है। यह काम क्या किया है मानो सब वानरों के इसने प्राण बचा लिये हैं॥
यह बात सुनकर सुग्रीव उठकर फिर हनुमानजी से मिले और वानरों के साथ रामचन्द्रजी के पास आए॥

राम कपिन्ह जब आवत देखा।
किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥
फटिक सिला बैठे द्वौ भाई।
परे सकल कपि चरनन्हि जाई॥

हिंदी अर्थ – वानरों को आते देखकर रामचन्द्रजी के मनमें बड़ा आनन्द हुआ कि ये लोग काम सिद्ध करके आ गये हैं॥ राम और लक्ष्मण ये दोनों भाई स्फटिक मणि की शिलापर बैठे हुए थे। वहां जाकर सब वानर दोनों भाइयों के चरणों में गिरे॥

प्रीति सहित सब भेंटे रघुपति करुना पुंज॥
पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ॥29॥

हिंदी अर्थ – करुणा निधान श्रीरामचन्द्र जी प्रीति पूर्वक सब वानरों से मिले और उनसे कुशल पूँछा. तब उन्होंने कहा कि हे नाथ! आपके चरण कमलों को कुशल देखकर (चरण कमलों के दर्शन पाने से) अब हम कुशल हें ॥29॥

हनुमानजी और सुग्रीव रामचन्द्रजी से मिले

जामवंत कह सुनु रघुराया।
जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर।
सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥

हिंदी अर्थ – उस समय जाम्बवान ने रामचन्द्रजी से कहा कि हे नाथ! सुनो, आप जिस पर दया करते हो॥
उसके सदा सर्वदा शुभ और कुशल निरंतर रहते हें। तथा देवता मनुष्य और मुनि सभी उस पर सदा प्रसन्न रहते हैं॥

सोइ बिजई बिनई गुन सागर।
तासु सुजसु त्रैलोक उजागर॥
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू।
जन्म हमार सुफल भा आजू॥

हिंदी अर्थ – और वही विजयी (विजय करने वाला), विनयी (विनय वाला) और गुणों का समुद्र होता है और उसकी सुख्याति तीनों लोकों में प्रसिद्ध रहती है॥
यह सब काम आपकी कृपा से सिद्ध हुआ हैं। और हमारा जन्म भी आज ही सफल हुआ है॥

नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी।
सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी॥
(जो मुख लाखहु जाइ न बरणी॥)
पवनतनय के चरित सुहाए।
जामवंत रघुपतिहि सुनाए॥

हिंदी अर्थ – हे नाथ! पवनपुत्र हनुमानजीने जो काम किया है उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता
(वह कोई आदमी जो लाख मुखोंसे कहना चाहे तो भी वह कहा नहीं जा सकता)॥
हनुमानजीकी प्रशंसाके वचन और कार्य जाम्बवानने रामचन्द्रजीको सुनाये॥

सुनत कृपानिधि मन अति भाए।
पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए॥
कहहु तात केहि भाँति जानकी।
रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥

हिंदी अर्थ – उन वचनों को सुनकर दयालु श्रीरामचन्द्वजी ने उठकर हनुमान जी को अपनी छाती से लगाया॥
और श्रीराम ने हनुमान जी से पूछा कि हे तात! कहो, सीता किस तरह रहती है? और अपने प्राणों की रक्षा वह किस तरह करती है?॥

नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ॥30॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी ने कहा कि हे नाथ । यद्यपि सीताजी को कष्ट तो इतना है कि उनके प्राण एक क्षणभर न रहे। परंतु सीता जी ने आपके दर्शन के लिए प्राणों का ऐसा बंदो बस्त करके रखा है कि रात दिन अखंड पहरा देनेके वास्ते आपके नाम को तो उसने सिपाही बना रखा है (आपका नाम रात-दिन पहरा देनेवाला है)। और आपके ध्यानको कपाट बनाया है (आपका ध्यान ही किवाड़ है)। और अपने नीचे किये हुए नेत्रों से जो अपने चरणकी ओर निहारती है वह यंत्रिका अर्थात् ताला है. अब उसके प्राण किस रास्ते बाहर निकलें ॥30॥

हनुमानजी ने श्रीराम को सीताजी का सन्देश दिया

चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही।
रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही॥
नाथ जुगल लोचन भरि बारी।
बचन कहे कछु जनककुमारी॥

हिंदी अर्थ – और चलते समय मुझको यह चूड़ा मणि दिया हे. ऐसे कह कर हनुमानजी ने वह चूड़ामणि रामचन्द्रजी को दे दिया। तब रामचन्द्रजी ने उस रत्नको लेकर अपनी छाती से लगाया॥
तब हनुमानजी ने कहा कि हे नाथ! दोनो हाथ जोड़कर नेत्रों में जल लाकर सीताजी ने कुछ वचन भी कहे है सो सुनिये॥

अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना।
दीन बंधु प्रनतारति हरना॥
मन क्रम बचन चरन अनुरागी।
केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी॥

हिंदी अर्थ – सीताजी ने कहा है कि लक्ष्मणजी के साथ प्रभु के चरण धरकर मेरी ओर से ऐसी प्रार्थना करना कि हे नाथ! आप तो दीनबंधु और शरणागतो के संकट को मिटाने वाले हो॥
फिर मन, वचन और कर्म से चरणो में प्रीति रखने वाली मुझ दासी को आपने किस अपराध से त्याग दिया है॥

अवगुन एक मोर मैं माना।
बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना॥
नाथ सो नयनन्हि को अपराधा।
निसरत प्रान करहिं हठि बाधा॥

हिंदी अर्थ – हाँ, मेरा एक अपराध पक्का (अवश्य) हैं और वह मैंने जान भी लिया है कि आपसे बिछुरते ही (वियोग होते ही) मेरे प्राण नही निकल गये॥
परंतु हें नाथ! वह अपराध मेरा नहीं है किन्तु नेत्रो का है; क्योंकि जिस समय प्राण निकलने लगते है उस समय ये नेत्र हठ कर उसमें बाधा कर देते हैं (अर्थात् केवल आपके दर्शन के लोभ से मेरे प्राण बने रहे हैं)॥

बिरह अगिनि तनु तूल समीरा।
स्वास जरइ छन माहिं सरीरा॥
नयन स्रवहिं जलु निज हित लागी।
जरैं न पाव देह बिरहागी॥

हिंदी अर्थ – हे प्रभु! आपका विरह तो अग्नि है, मेरा शरीर तूल (रुई) है। श्वास प्रबल वायु है। अब इस सामग्री के रहते शरीर क्षणभर में जल जाय इस में कोई आश्चर्य नहीं॥
परंतु नेत्र अपने हितके लिए अर्थात् दर्शनके वास्ते जल बहा बहा कर उस विरह की आग को शांत करते हैं, इससे विरह की आग भी मेरे शरीर को जला नहीं पाती॥

सीता कै अति बिपति बिसाला।
बिनहिं कहें भलि दीनदयाला॥

हिंदी अर्थ – हनुमानजी ने कहा कि हे दीन दयाल! सीता की विपत्ति ऐसी भारी है कि उसको न कहना ही अच्छा है॥