Sampoorna Sunderkand With Hindi Meaning | सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ हिंदी अर्थ सहित || Doha 31 to 36 ||
॥ दोहा 31 ॥
निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति,बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति।
हिंदी अर्थ – हे करुणानिधान! हे प्रभु! सीताजी के एक एक क्षण, सौ सौ कल्प के समान व्यतीत होते हैं। इसलिए जल्दी चलकर और अपने बाहुबल से दुष्टोंके दलको जीतकर उनको जल्दी ले आइए ॥31॥
॥ चौपाई ॥
रामचन्द्रजी और हनुमान का संवाद
सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना।
भरि आए जल राजिव नयना॥
बचन कायँ मन मम गति जाही।
सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥
हिंदी अर्थ – सुख के धाम श्रीरामचन्द्र जी सीताजी के दुःख के समाचार सुन अति खिन्न हुए और उनके कमल से दोनों नेत्रों में जल भर आया॥ रामचन्द्रजी ने कहा कि जिसने मन, वचन व कर्मसे मेरा शरण लिया है क्या स्वप्न में भी उसको विपत्ति होनी चाहिये? कदापि नहीं॥
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई।
जब तव सुमिरन भजन न होई॥
केतिक बात प्रभु जातुधान की।
रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥
हिंदी अर्थ – हनुमान जी ने कहा कि हे प्रभु! मनुष्य की यह विपत्ति तो वही (तभी) है जब यह मनुष्य आपका भजन स्मरण नही करता॥ हे प्रभु इस राक्षस की कितनीसी बात है। आप शत्रुको जीतकर सीताजी को ले आइये॥
सुनु कपि तोहि समान उपकारी।
नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥
प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
हिंदी अर्थ – रामचन्द्रजी ने कहा कि हे हनुमान! सुन, तेरे बराबर मेरे उपकार करने वाला देवता, मनुष्य और मुनि कोइ भी देहधारी नहीं है॥
हे हनुमान! में तेरा क्या प्रत्युपकार (बदले में उपकार) करूं; क्योंकि मेरा मन बदला देनेके वास्ते सन्मुखही (मेरा मन भी तेरे सामने) नहीं हो सकता॥
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।
देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता।
लोचन नीर पुलक अति गाता॥
हिंदी अर्थ – हे हतुमान! सुन, में ने अपने मन में विचार करके देख लिया है कि मैं तुम से उऋण नहीं हो सकता॥
रामचन्द्र जी ज्यों ज्यों वारंवार हनुमानजी की ओर देखते है; त्यों त्यों उनके नेत्रों में जल भर आता है और शरीर पुलकित हो जाता है॥
सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ॥32॥
हिंदी अर्थ – हनुमान जी प्रभु के वचन सुनकर और प्रभुके मुख की ओर देखकर मन में परम हर्षित हो गए॥ और बहुत व्याकुल होकर कहा ‘हे भगवान्! रक्षा करो’ ऐसे कहता हुए चरणों मे गिर पड़े ॥32॥
श्री राम हनुमान संवाद
बार बार प्रभु चहइ उठावा।
प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा।
सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥
हिंदी अर्थ – यद्यपि प्रभु उनको चरणों में से बार-बार उठाना चाहते हैं, परंतु हनुमान् प्रेम में ऐसे मग्न हो गए थे कि वह उठना नहीं चाहते थे॥
कवि कहते है कि रामचन्द्रजी के चरण कमलों के बीच हनुमानजी सिर धरे है इस बात को स्मरण करके महादेव की भी वही दशा हो गयी और प्रेम में मग्न हो गये; क्योंकि हनुमान् रुद्रका अंशावतार है॥
सावधान मन करि पुनि संकर।
लागे कहन कथा अति सुंदर॥
कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा।
कर गहि परम निकट बैठावा॥
हिंदी अर्थ – फिर महादेव अपने मन को सावधान करके अति मनोहर कथा कहने लगे॥
महादेव जी कहते है कि हे पार्वती! प्रभुने हनमान् कों उठाकर छाती से लगाया और हाथ पकड कर अपने बहुत नजदीक बिठाया॥
कहु कपि रावन पालित लंका।
केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना।
बोला बचन बिगत अभिमाना॥
हिंदी अर्थ – और हनुमान से कहा कि हे हनुमान! कहो, वह रावण की पाली हुई लंका पुरी, कि जो बड़ा बंका किला है, उसको तुमने कैसे जलाया?॥
रामचन्द्रजीकी यह बात सुन उनको प्रसन्न जानकर हनुमानजी ने अभिमान रहित होकर यह वचन कहे कि॥
साखामग कै बड़ि मनुसाई।
साखा तें साखा पर जाई॥
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा।
निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥
हिंदी अर्थ – हे प्रभु! बानर का तो अत्यंत पराक्रम यही है कि वृक्ष की एक डालसे दूसरी डालपर कूद जाय॥
परंतु जो मै समुद्र को लांघकर लंका में चला गया और वहा जाकर मैंने लंका को जला दिया और बहुत से राक्षसों को मारकर अशोक वनको उजाड़ दिया॥
सो सब तव प्रताप रघुराई।
नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥
हिंदी अर्थ – हे प्रभु! यह सब आपका प्रताप है। हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता कुछ नहीं है॥
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल ॥33॥
हिंदी अर्थ – हे प्रभु! आप जिस पर प्रसन्न हों, उसके लिए कुछ भी असाध्य (कठिन) नहीं है।
आपके प्रताप से निश्चय रूई बड़वानल को जला सकती है (असंभव भी संभव हो सकता है) ॥33॥
श्री राम और हनुमानजी का संवाद
नाथ भगति अति सुखदायनी।
देहु कृपा करि अनपायनी॥
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी।
एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥
हिंदी अर्थ – रामचन्द्रजीके ये वचन सुनकर हनुमानजीने कहा कि हे नाथ! मुझे तो कृपा करके आपकी अनपायिनी (जिसमें कभी विच्छेद नहीं पडे ऐसी, निश्चल) कल्याणकारी और सुखदायी भक्ति दो॥
महादेवजी ने कहा कि हे पार्वती! हनुमान की ऐसी परम सरल वाणी सुनकर प्रभु ने कहा कि हे हनुमान्! ‘एवमस्तु’ (ऐसा ही हो) अर्थात् तुम को हमारी भक्ति प्राप्त हो॥
उमा राम सुभाउ जेहिं जाना।
ताहि भजनु तजि भाव न आना॥
यह संबाद जासु उर आवा।
रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥
हिंदी अर्थ – हे पार्वती! जिन्होंने रामचन्द्रजी के परम दयालु स्वभाव को जान लिया है, उनको रामचन्द्रजी की भक्ति को छोंड़कर दूसरा कुछ भी अच्छा नहीं लगता॥
यह हनुमान् और रामचन्द्रजी का संवाद जिसके हृदय में दृढ़ रीति से आ जाता है, वह श्री रामचन्द्रजी की भक्ति को अवश्य पा लेता है॥
सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा।
जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा।
कहा चलैं कर करहु बनावा॥
हिंदी अर्थ – प्रभु के ऐसे वचन सुनकर तमाम वानर वृन्दने पुकार कर कहा कि हे दयालू! हे सुख के मूल कारण प्रभु! आपकी जय हो, जय हो, जय हो॥
उस समय प्रभुने सुग्रीव को बुलाकर कहा कि हे सुग्रीव! अब चलने की तैयारी करो॥
अब बिलंबु केह कारन कीजे।
तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी।
नभ तें भवन चले सुर हरषी॥
हिंदी अर्थ – अब विलम्ब क्यों किया जाता है। अब तुम वानरों को तुरंत आज्ञा क्यो नहीं देते हो॥
इस कौतुक को देखकर (भगवान की यह लीला) देवताओं ने आकाश से बहुत से फूल बरसाये और फिर वे आनंदित होकर अपने अपने लोक को चल दिये॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ ॥34॥
हिंदी अर्थ – रामचन्द्रजी की आज्ञा होते ही सुग्रीवने वानरों के सेनापतियों को बुलाया और सुग्रीव की आज्ञा के साथही वानर और रीछो के झुंड कि जिनके अनके प्रकार के वर्ण हैं और अतूलित बल हैं वे वहां आये॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
श्री रामजी का वानरों की सेना के साथ समुद्र तट पर जाना
प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा।
गर्जहिं भालु महाबल कीसा॥
देखी राम सकल कपि सेना।
चितइ कृपा करि राजिव नैना॥
हिंदी अर्थ – महाबली वानर और रीछ वहां आकर गर्जना करते हैं और रामचन्द्रजी के चरण कमलों में सिर झुँकाकर प्रणाम करते हैं॥
तमाम वानरॉ की सेना को देखकर कमल नयन प्रभुने कृपा दृष्टि से उनकी ओर देखा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
राम कृपा बल पाइ कपिंदा।
भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा॥
हरषि राम तब कीन्ह पयाना।
सगुन भए सुंदर सुभ नाना॥
हिंदी अर्थ – प्रभु की कृपादृष्टि पड़ते ही तमाम वानर रघुनाथजी के कृपाबल को पाकर ऐसे बली और बड़े हो गये कि मानों पक्ष सहित पहाड़ ही (पंखवाले बड़े पर्वत) तो नहीं है? ॥
उस समय रामचन्द्रजी ने आनंदित होकर प्रयाण किया. तब नाना प्रकार के अच्छे और सुन्दर शगुन भी होने लगे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जासु सकल मंगलमय कीती।
तासु पयान सगुन यह नीती॥
प्रभु पयान जाना बैदेहीं।
फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं॥
हिंदी अर्थ – यह दस्तूर है कि जिस के सब मंगलमय होना होता है (जिनकी कीर्ति सब मंगलों से पूर्ण है) उसके प्रयाण के समय शगुनभी अच्छे होते है॥
प्रभु ने प्रयाण किया उसकी खबर सीताजी को भी हो गई; क्योंकि जिस समय प्रभुने प्रयाण किया उस वक्त सीताजी के शुभ सूचक बाएं अंग फड़कने लगे (मानो कह रह है की श्री राम आ रहे हैं)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई।
असगुन भयउ रावनहिं सोई॥
चला कटकु को बरनैं पारा।
गर्जहिं बानर भालु अपारा॥
हिंदी अर्थ – ओर जो जो शगुन सीताजी के अच्छे हुए वे सब रावण के बुरे शगुन हुए॥
इस प्रकार रामचन्द्रजी की सेना रवाना हुई, कि जिसके अन्दर असंख्यात वानर और रीछ गरज रहे है. उस सेनाका वर्णन करके कौन आदमी पार पा सकता है (कौन कर सकता है?)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
नख आयुध गिरि पादपधारी।
चले गगन महि इच्छाचारी॥
केहरिनाद भालु कपि करहीं।
डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं॥
हिंदी अर्थ – जिनके नख ही तो शस्त्र हैं। पर्वत व वृक्ष हाथों में है वे इच्छाचारी वानर (इच्छानुसार सर्वत्र बेरोक-टोक चलनेवाले) और रीछ आकाश में कूदते हुए, आकाश मार्ग होकर सेनाके बीच जा रहे है॥
वानर व रीछ मार्ग में जाते हुए सिंहनाद कर रहे है. जिससे दिग्गज हाथी डगमगाते हैं और चीत्कार करते हैं॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
छंद
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे।
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे॥
कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं।
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं॥
हिंदी अर्थ – जब रामचन्द्रजीने प्रयाण किया तब दिग्गज चिंघाड़ने लगे, पृथ्वी डगमगाने लगी, पर्वत कांपने लगे, समुद्र खड़भड़ा गये, सूर्य आनंदित हुआ कि हमारे वंशमें दुष्टों को दंड देने वाला पैदा हुआ। देवता, मुनि, नाग व् किन्नर ये सब मन में हर्षित हुए कि अब हमारे दुःख टल गए। वानर विकट रीति से कटकटा रहे है, कोटयानकोट बहुत से भट इधर उधर दौड़ रहे हैं और रामचन्द्रजी के गुणगणों को गा रहे हैं कि हे प्रबल प्रताप वाले राम! आपकी जय हो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई।
गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ठ कठोर सो किमि सोहई॥
रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी।
जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी॥
हिंदी अर्थ – उस सेना के अपार भार को शेषजी (सर्पराज शेष) स्वयं सह नहीं सकते जिससे वारंवार मोहित होते
हें और अपने दाँतों से बार-बार कमठ की (कच्छप की) कठोर पीठ को पकडे रहते है। सो वह शोभा कैसी मालूम होती है कि मानो रामचन्द्रजीके सुन्दर प्रयाण की प्रस्थिति (प्रस्थान यात्रा) को परमरम्य जानकर शेष जी कमठ की पीठरूप खप्पर पर अपने दांतो से लिख रहे हैं, कि जिससे वह प्रस्थान का पवित्र संवत् च मिती सदा स्थिर बनी रहे, जैसे कुएं बावली मंदिर आदि बनाने वाले उसपर पत्थर में प्रशस्ति खुदवाकर लगा देते है ऐसे शेषजी मानो कमठ की पीठपर प्रशस्ति ही खोद रहे थे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर ॥35॥
हिंदी अर्थ – कृपाके भ्रंडार श्रीरामचन्द्रजी इस तरह जाकर समुद्र के तीरपर उतरे, तब वीर रीछ और वानर जहां तहां वहुत से फल खाने लगे ॥35॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
मंदोदरी और रावण का संवाद
चौपाई
उहाँ निसाचर रहहिं ससंका।
जब तें जारि गयउ कपि लंका॥
निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा।
नहिं निसिचर कुल केर उवारा॥
हिंदी अर्थ – जबसे हनुमान् लंका को जलाकर चले गए तबसे वहां राक्षस लोग शंका सहित (भयभीत) रहने लगे॥
और अपने अपने घरमें सब विचार करने लगे कि अब राक्षस कुल बचने का नहीं है (राक्षस कुल की रक्षा का कोई उपाय नहीं है)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जासु दूत बल बरनि न जाई।
तेहि आएँ पुर कवन भलाई॥
दूतिन्ह सन सुनि पुरजन बानी।
मंदोदरी अधिक अकुलानी॥
हिंदी अर्थ – हम लोग जिसके दूत के बल को भी कह नहीं सकते उसके आनेपर फिर पुरका भला कैसे हो सकेगा (बुरी दशा होगी)॥
नगरके लोगों की ऐसी अति भय सहित वाणी सुनकर मन्दोंदरी अपने मन में बहुत घबरायी॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
रहसि जोरि कर पति पग लागी।
बोली बचन नीति रस पागी॥
कंत करष हरि सन परिहरहू।
मोर कहा अति हित हियँ धरहू॥
हिंदी अर्थ – और एकान्त में आकर हाथ जोड़कर पाति के चरणों मे गिरकर नितिके रससे भरे हुए ये वचन बोली॥
हे कान्त! हरि भगवान से जो आपके वैरभाव हैं उसे छोड़ दीजिए। मै जो आपसे कहती हूँ वह आपको अत्यंत हितकारी है सो इसको अपने चित्त में धारण कीजिए॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
समुझत जासु दूत कइ करनी।
स्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी॥
तासु नारि निज सचिव बोलाई।
पठवहु कंत जो चहहु भलाई॥
हिंदी अर्थ – भला अब उसके दूत के कामको तो देखो कि जिसको नाम लेनेसे राक्षसियों के गर्भ गिर जाते हैं ॥
इसलिए हे कान्त! मेरा कहना तो यह है कि जो आप अपना भला चाहो तो, अपने मंत्रियों को बुलाकर उसके साथ उनकी स्त्री को भेज दीजिए॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
तव कुल कमल बिपिन दुखदाई।
सीता सीत निसा सम आई॥
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें।
हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें॥
हिंदी अर्थ – जैसे शीत ऋतु अर्थात् शिशिर रीतु की रात्रि (जाड़े की रात्रि) आने से कमलों के बनका नाश हो जाता हे ऐसे तुम्हारे कुलरूप कमल बन का संहार करने के लिये यह सीता शिशिर रितु की रात्रि के समान आयी है॥
हे नाथ! सुनो, सीताको बिना देनेके तो चाहे महादेव ओर ब्रह्माजी भले कुछ उपाय क्यों न करे पर उससे आपका हित नहीं होगा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक।
जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक ॥36॥
हिंदी अर्थ – हे नाथ रामचन्द्रजी के बाण तो सर्पो के गणके (समूह) समान है और राक्षस समूह मेंडक के झुंड के समान हैं। सो वे इनका संहार नहीं करते इससे पहले पहले आप यत्न करो और जिस बात का हठ पकड़ रक्खा है उसको छोड़कर उपाय कर लीजिए॥
रावण और मंदोदरी का संवाद
चौपाई
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी।
बिहसा जगत बिदित अभिमानी॥
सभय सुभाउ नारि कर साचा।
मंगल महुँ भय मन अति काचा॥
हिंदी अर्थ – कवि कहता है कि वो शठ मन्दोदरी की यह वाणी सुनकर हँसा, क्योंकि उसके अभिमान कौ तमाम संसार जानता है॥
और बोला कि जगत्में जो यह बात कही जाती है कि स्त्री का स्वभाव डरपोक होता है सो यह बात सच्ची है। और इसी से तेरा मन मंगल की बात में अमंगल समझता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जौं आवइ मर्कट कटकाई।
जिअहिं बिचारे निसिचर खाई॥
कंपहिं लोकप जाकीं त्रासा।
तासु नारि सभीत बड़ि हासा॥
हिंदी अर्थ – रावण बोला, अब वानरोकी सेना यहां आवेगी तो क्या बिचारी वह जीती रह सकेगी, क्योंकि राक्षस उसको आते ही खा जायेंगे॥
जिसकी त्रास के मारे लोकपाल कांपते है उसकी स्त्रीका भय होना यह तो एक बड़ी हँसीकी बात है॥जय सियाराम जय जय सियाराम
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई।
चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥
मंदोदरी हृदयँ कर चिंता।
भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥
हिंदी अर्थ – वह दुष्ट मंदोदारी को ऐसे कह, उसको छाती में लगाकर मनमें बड़ी ममता रखता हुआ सभा में गया॥
परन्नु मन्दोदरी ने उस वक़्त समझ लिया कि अब इस कान्तपर दैव प्रतिकूल हो गया है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई।
सिंधु पार सेना सब आई॥
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू।
ते सब हँसे मष्ट करि रहहू॥
हिंदी अर्थ – रावण सभा मे जाकर बैठा। वहां ऐसी खबर आयी कि सब सेना समुद्र के उस पार आ गयी है॥
तब रावण ने सब मंत्रियों से पूँछा की तुम अपना अपना जो योग्य मत हो वह कहो। तब वे सब मंत्री हँसे और चुप लगा कर रह गए (इसमें सलाह की कौन-सी बात है?)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं।
नर बानर केहि लेखे माहीं॥
हिंदी अर्थ – फिर बोले की हे नाथ! जब आपने देवता और दैत्यों को जीता उसमें भी आपको श्रम नही हुआ तो मनुष्य और वानर तो कौन गिनती है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम