श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्रम | Shri Radha Kripa Kataksh Stotram | Free PDF Download
पढ़ने से ऊब गए हैं?
अब हमारे eAstroHelp ऑडियो पॉडकास्ट पर पूरा स्तोत्रं सुनें!
Shri Radha Kripa Kataksh
मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी,
प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।
व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१)
अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते,
प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (२)
अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां,
सुविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (३)
तड़ित्सुवर्ण चम्पक प्रदीप्तगौरविग्रहे,
मुखप्रभा परास्त-कोटि शारदेन्दुमण्ङले।
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशाव लोचने,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (४)
मदोन्मदाति यौवने प्रमोद मानमण्डिते,
प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।
अनन्य धन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (५)
अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते,
प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमंदहास्यचूर्ण पूर्ण सौख्यसागरे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (६)
मृणाल वालवल्लरी तरंग रंग दोर्लते ,
लताग्रलास्यलोलनील लोचनावलोकने।
ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (७)
सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेख कम्बुकण्ठगे,
त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्ति दीधिते।
सलोल नीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (८)
नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण,
प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (९)
अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्,
समाजराजहंसवंश निक्वणाति गौरवे,
विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारू चक्रमे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१०)
अनन्तकोटिविष्णुलोक नम्र पदम जार्चिते,
हिमद्रिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपार सिद्धिऋद्धि दिग्ध -सत्पदांगुलीनखे,
कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (११)
मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी,
त्रिवेदभारतीश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी,
ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥ (१२)
इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी,
करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकर्मनाशनं,
लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डल प्रवेशनम्॥ (१३)
जय श्री राधे….