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श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान |Shrimad Bhagwat Geeta Ka Gyan

श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान |Shrimad Bhagwat Geeta Ka Gyan

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महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने रणभूमि में खड़े होकर पाण्डु पुत्र को बहुत ही अनमोल ज्ञान सौपा था जो कि कृष्ण-अर्जुन संवाद के नाम से ही नहीं बल्कि भगवत गीता ज्ञान (Bhgwat Geeta Gyan) तथा गीता के उपदेश (Geeta Ke Updesh) के नाम से भी प्रचलित हुआ। परन्तु भगवत गीता ज्ञान सिर्फ अर्जुन के युद्ध विजय के लिए ही नहीं बल्कि सारे संसार के भलाई के लिए भी था। तो, आइये आपको रहस्यमयी भगवत गीता के श्लोक तथा भगवत गीता का सार बतलाते है:

कहते है, हिन्दू धर्म का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है वेद। हिन्दू धर्म में 4 वेद है:

  1. ऋगवेद
  2. यजुर्वेद
  3. सामवेद
  4. अथर्ववेद

इन्ही 4 वेदो के सार को हम वेदांग तथा उपनिषद बोलते है और इन्ही उपनिषदों के सार को हम भगवत गीता में पाते है। 

 

भगवत गीता क्या है? (Bhgwat Geeta Kya Hai?)

भगवत गीता में वेदांग तथा उपनिषद का निचोड़ है। भगवत गीता में 18 अध्याय तथा 720  श्लोक है। भगवत गीता को धर्म ग्रन्थ का दर्जा दिया गया है। वेदांग, उपनिषद तथा धर्मसूत्रों में लिखे ज्ञान को बहुत ही सहजता से भगवत गीता में शामिल किया गया है।  आइये जानते है, भगवत गीता के उपदेश (Geeta Ke Updesh) को भगवत गीता श्लोक (Geeta Shlok) के द्वारा: 

 

||यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत||
||अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्||

अर्थात – जब-जब धर्म के रास्ते पर कोई अड़चन आएगी या पाप बढ़ेगा, तब-तब मै धर्म की रक्षा के लिए इस धरती पर जन्म लूँगा। 

 

||परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्||
||धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे||

अर्थात- धर्मी की रक्षा के लिए तथा दुष्टो के विनाश के लिए तथा इस धरती पर धर्म के सिद्धांतो की स्थापना के लिए, युगों युगों तक मै आऊँगा ।

 

||नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः||
||न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः||

अर्थात – हथियार से हमारी आत्मा को कोई समाप्त नहीं कर सकता और ना ही इसे कोई जला सकता है। आत्मा न तो जल से गिला हो सकती है और ना ही हवा इसे सूखा सकती है। 

 

||सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ||
||ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि||

अर्थात – हमेशा अपने कर्तव्यों के लिए लड़ों। हर चीज का इलाज एक जैसे ही करो वो चाहें सुख हो या दुःख या हो संकट, वैसे ही लाभ और हानि तथा हार हो या जित और इसी तरह अपनी जिम्मेदारी को सही से पूर्ण करने से आप के हांथो कभी पाप नहीं होगा।  

 

||अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः||
||मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः||

अर्थात –  अहंकार, बल, इच्छा, काम और क्रोध जिनमें वास करता है वो अपने अंदर के तथा दुसरो के शरीर में वास करने वाले के अंदर से परमात्मा को हटाने की चेष्टा करते है।

 

||हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्||
||तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः||

अर्थात – यदि तुम युद्ध में लड़ाई करते हुए वीरगति को प्राप्त करते हो, तो तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी और यदि युद्ध में विजय होते हो, तो भी तुम्हें इस धरती का सुख प्राप्त होगा इसलिए श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि “उठो और युद्ध करो”।  

 

||ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते||
||सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते||

अर्थात – अपने मन से मोह माया की इच्छा को त्याद दो, अपने मन में बार-बार मनुष्य, वस्तुवों के बारे में सोच-सोच कर मोह माया के बंधन में बंध जाते है जिसके कारण मनुष्यों में काम अर्थात कामना का जन्म होता है और यही कामना क्रोध को जन्म देती है।   

 

||क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः||
||स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति||

अर्थात – किसी का विरोध करने से मनुष्य का विनाश तय है। मनुष्य की बुद्धि अथवा मति मर जाने से स्मृति भ्रम उतपन्न होता है और बुद्धि के खत्म हो जाने से इंसान खुद का विनाश कर देता है इसलिए क्रोध से दूर रहे वर्ना यह क्रोध ही विनाश का कारण बन जाएगी।

 

||कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन||
||मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि||

अर्थात – कर्म करते जाओ पर उस कर्म के फल की चिंता न करो। आपका अधिकार अपने कर्म पर है लेकिन उस कर्म के फल पर आपका अधिकार नहीं है। परन्तु उस कार्य में तुम्हारा मन भी लगना चाहिए तभी सही रूप से फलों की प्राप्ति भी होती है।

 

||यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः||
||स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते||

अर्थात – किसी भी श्रेस्ठ मानव के द्वारा अपनाये गए आचरण को ही मानव समाज अपनाता है। जैसा कार्य श्रेष्ठ मानव करता है वैसा ही कार्य बाकि के लोग करते है। श्रेष्ट मानव् को अच्छे कर्म करने की ही हिदायत दी गई है।

 

||श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः||
||ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति||

अर्थात – जो लोग श्रद्धा तथा अपने इन्द्रियों पर संयम रखते है और श्रम करते है, वही अपनी तत्परता से ज्ञान भी अर्जित कर लेते है और ज्ञान से ही संभव हो जाता है परम शांति को प्राप्त करना। इस परम शान्ति के प्राप्त हो जाने से मनुष्य का मन कभी भी भटकता नहीं है। 

 

||सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज||
||अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||

अर्थात – तुम मेरी शरण में आ जाओ, मै तुम्हें तुम्हारे हर पाप से मुक्त कर दूंगा। इसलिए तुम शोक मत मनाओ। यहाँ श्री कृष्ण जी कहते है कि सबकुछ त्याग दो और मेरी शरण में आओ मै तुम्हारे हर पाप को क्षमा कर दूंगा। 

भगवत गीता के इन कीमती श्लोको को जिसने अपने आम जीवन में अपना लिया उसे न तो किसी भी चीज का लोभ रहेगा और नहीं कष्ट। महाभारत तथा रामायण के तरह ही भगवत गीता एक ऐसा धर्मग्रन्थ है जो किसी भी इंसान के मन में कर्म की भावना को जगाता है और इंसान को कर्मयोगी बनाता है। मनुष्य के जीवन में आने वाले हर एक कष्ट का हल है गीता के उपदेशो में। जो भी इन उपदेशों को अपना ले उसका मनुष्य जीवन सफल हो जाएगा। 

Frequently Asked Questions

1. भगवत गीता में कितने अध्याय तहत श्लोक है?

भगवत गीता में 18 अध्याय तथा 720 श्लोक है। 

2. श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश किसे दिया था ?

श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। 

3. किस युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया?

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्णा ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था।