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शुक्ल पक्ष से जुड़ी पौराणिक कथा तथा शुक्ल पक्ष में पुत्र प्राप्ति के उपाय (Shukla Paksha Se Judi Pauranik Katha Tatha Shukla Paksha Me Putra Prapti Ke Upay)

शुक्ल पक्ष से जुड़ी पौराणिक कथा तथा शुक्ल पक्ष में पुत्र प्राप्ति के उपाय (Shukla Paksha Se Judi Pauranik Katha Tatha Shukla Paksha Me Putra Prapti Ke Upay)

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हिन्दू धर्म में किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ और अशुभ मुहूर्त होती है जिसमें बहुत से कार्यों को वर्जित किया गया है और इन शुभ और अशुभ मुहूर्त का पता हम “हिन्दू धर्म पंचांग” और “हिन्दू काल गणना” से लगाते है। पंचांग में एक माह में 30 दिन होते है जिन्हें 2 पक्षों में बांटा गया है। जिनमें प्रत्येक माह 15 – 15 दिनों के होते है। जो इस प्रकार है :

कृष्णपक्ष 1 से 14 दिन तथा “अमावस्या”

शुक्ल पक्ष 1 से 14 दिन तथा “पूर्णिमा”    

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, चन्द्रमा की 16 कालाएँ है और इन्हीं कलाओं के कम या ज्यादा हो जाने को ही कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष कहते है।

पर, आज हम बात करेंगे शुक्ल पक्ष के बारे में, आइये जानते है शुक्ल पक्ष से जुड़ी बातें :

शुक्ल पक्ष और शुक्ल पक्ष की तिथियां क्या है?

हिन्दू काल गणना के अनुसार “अमावस्या” और “पूर्णिमा” के मध्य वाले भाग अथवा दिनों को ही शुक्ल पक्ष (Shukla Paksha) कहा जाता है और इसलिए अमावस्या के बाद से 15 दिन शुक्ल पक्ष कहलाता है। अमावस्या के दूसरे दिन से ही चन्द्रमा के आकर में बढ़ोतरी होती है और काली अँधेरी रात में चन्द्रमा की चांदनी फैलने लगती है और 15वें दिन अर्थात पूर्णिमा के दिन चंद्र आकार में गोल और बहुत बड़ा हो जाता है जिससे की अँधेरी रात में भी चंद्र की किरणों से हल्का प्रकाश फैलता है।

शुक्ल पक्ष के दिनों में चन्द्रमा बलशाली तथा प्रकाशवान होता है तथा आकार में भी बड़ा होता है और इसी कारण “शुक्ल पक्ष” को “शुभ” माना जाता है तथा शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त भी माना जाता है। शुक्ल पक्ष को “चांदण पक्ष” के नाम से भी पुकारा जाता है।   

शुक्ल पक्ष की तिथियां :

शुक्ल पक्ष की तिथियां “अमावस्या” के दूसरे दिन से शुरू होती है, जो इस प्रकार है:

  • “प्रतिपदा”
  • “द्वितीया”
  • ”तृतीया” 
  • “चतुर्थी”   
  • “पंचमी”   
  • “षष्ठी”    
  • “सप्तमी” 
  • “अष्टमी” 
  • “नवमी”   
  • “दशमी”   
  • “एकादशी”
  • “द्वादशी”
  • “त्रयोदशी”
  • “चतुर्दशी”
  • “पूर्णिमा” 

शुक्ल पक्ष से जुड़ी पौराणिक कथा :

एक बार की बात है, प्रजापति दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग का श्राप दे दिया और उस रोग की पीड़ा सहते-सहते चंद्र देव के जीवन का अंतिम समय करीब आने लगा। तब, चंद्र देव ने भगवान शिव की आराधना कर के भगवान शिव को प्रसन्न किया जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया और शिव जी की कृपा से चंद्र देव का क्षय रोग समाप्त हो गया और “चन्द्रमा” का तेज वापस बढ़ने लगा तथा चंद्र देव को जीवन दान मिला। प्रजापति दक्ष के श्राप को मिटाया नहीं जा सकता था और इसीलिए चन्द्रमा को शुक्ल पक्ष में 1 से 14 दिन तथा “पूर्णिमा” के लिए ही आकार में बड़े तथा प्रकाशवान होने का वरदान मिला और इस तरह से ये 15 दिन शुक्ल पक्ष कहलाया

शुक्ल पक्ष में पुत्र प्राप्ति के उपाय :

शुक्ल पक्ष को बहुत शुभ माना गया है और शुभ समय में कोई भी अच्छा कार्य अच्छी नियत से करने पर शुभ परिणाम ही प्राप्त होता है। वैसे तो पुत्र और पुत्री में कोई भी अंतर नहीं होता परन्तु कुछ नव दंपत्तियों पुत्र शुक्ल पक्ष के शुभ योग में ही पुत्र की कामना करते है, तो आज हम आपको बतलायेंगे शुक्ल पक्ष में पुत्र प्राप्ति के उपाय, जो इस प्रकार है :

  • यदि आपको शुक्ल पक्ष में पुत्र प्राप्ति की इच्छा है तो मासिक धर्म अथवा पीरियड्स के चौथे दिन – सहवास की रात्रि वाले दिन में एक गिलास चावल का पानी अथवा मांड में एक कागजी निम्बू का रस मिला लें और उसे पी लें। पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिला यदि रजोधर्म से मुक्ति पाकर लगातार 3 दिन तक चावल के मांड में नींबू मिलाकर पी लें और पीने के पश्चात अपनी खुशी से पति के साथ सहवास करे तो उसकी पुत्र प्राप्ति की इच्छा अवश्य पूर्ण होती है। ऐसा करने पर ईश्वर के आशीर्वाद से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। गर्भ न ठहरने पर प्रति माह शुक्ल पक्ष में यह प्रयोग 3 दिन तक लगातार करे परन्तु गर्भ ठहरने के बाद इस प्रयोग को बंद कर दें ।
  • शुक्ल पक्ष की रात्रि में “पूर्णिमा वाली पखवाड़ा” भी होना चाहिए और यह जरुरी भी है, इसका अर्थ है कि – यदि कृष्ण पक्ष की रात हो तो गर्भधारण की इच्छा से सहवास ना करके परिवार नियोजन पर ध्यान देना चाहिए। केवल शुक्ल पक्ष की रातों में ही गर्भधारण की इच्छा से सहवास करना चाहिए जिससे की यशस्वी पुत्र की प्राप्ति हो सके।
  • शुक्ल पक्ष में जैसे-जैसे तिथियों में बढ़ोतरी होती है वैसे ही चन्द्रमा की कलाओं में भी बढ़ोतरी होती जाती है और इसी तरह से ऋतुकाल के रात्रियों के क्रम में भी बढ़ोतरी होती जाती है तथा इसमें ही पुत्र रत्न की प्राप्ति की सम्भावनानों में भी बढ़ोतरी होती जाती है। जैसे कि – छठवीं रात्रि की अपेक्षा आठवीं रात्रि , आठवीं रात्रि की अपेक्षा दसवीं रात्रि तथा दसवीं रात्रि की अपेक्षा बारहवीं रात्रि – अत्यधिक उपयुक्त तथा शुभ मानी जाती है।
  • गर्भधारण वाले दिन और रात्रि में आहार-विहार तथा आचार-विचार को शुभ और पवित्र रखना चाहिए। साथ ही साथ हर्षोलासित भी रहना चाहिए। गर्भधारण वाले दिन से ही उचित आहार का पालन करे, जैसे कि- दूध, चावल से बनी खीर, भात। प्रातः काल – मक्खन तथा मिश्री, थोड़ी सी पीसी हुई कालीमिर्च डालकर कच्चा नारियल या सौफं खाते रहें। रात्रि में – दूध के साथ शतावरी का चूर्ण अवश्य लें। ऐसा पूरे 9 महीने तक ही करें। ऐसा करने से गौरवर्ण, सुडौल तथा स्वास्थ्य संतान की प्राप्ति होगी।

Frequently Asked Questions

1. शुक्ल पक्ष कब होता है?

शुक्ल पक्ष अमावस्या के दूसरे दिन से लेकर पूर्णिमा तक होता है 

2. शुक्ल पक्ष कितने दिनों तक का होता है?

शुक्ल पक्ष 15 दिनों का होता है।

3. शुक्ल पक्ष गर्भधारण के लिए शुभ है या अशुभ ?

शुक्ल पक्ष गर्भधारण के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है 

4. कौन से पक्ष में चन्द्रमा अधिक बलशाली होता है?

शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा अधिक बलशाली होता है।

5. शुक्ल पक्ष में गर्भधारण करने से कैसे बच्चे होते है?

शुक्ल पक्ष में गर्भधारण करने सेपालन करने वाले, दानवीर, अन्नदाता तथा उच्च श्रेणी के मित्र वाले गुणों से परिपूर्ण बच्चे होते है।

6. शुक्ल पक्ष का दूसरा नाम क्या है?

शुक्ल पक्ष का दूसरा नामचांदण पक्ष है