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वेद: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद (Veda: Rigveda, Yajurveda, Samveda, Atharvaveda)

वेद: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद (Veda: Rigveda, Yajurveda, Samveda, Atharvaveda)

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हिन्दू अथवा सनातन धर्म की नींव है “वेद। सिर्फ धर्म ही नहीं बल्कि संसार की उत्पत्ति ईश्वर ने वेद के द्वारा ही किया। वेद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया हुआ ज्ञान है। सर्वप्रथम ईश्वर ने वेद का ज्ञान महर्षियों को दिया तत्पश्चात महर्षियों ने ऋषियों को और उन्ही ऋषियों ने वेद के ज्ञान को सामान्य इंसानो तक पहुँचाया और इसी  कारणवश इसका दूसरा नाम श्रुति भी कहलाया।  

वेद का सामान्य अर्थ है “ज्ञान। वेद एक भंडार है – पुरातन ज्ञान और विज्ञान का तथा इसमें हर तरह का ज्ञान है जैसे कि – ईश्वर, ब्रह्माण्ड, वैदिक ज्योतिष, गणित, औषधि, रसायन, प्रकृति, इतिहास, भूगोल, खगोल, धार्मिक नियम तथा रीती-रिवाज इत्यादि। वेद में मनुष्य के हर कष्ट और समस्या का निवारण समाहित है।  

इस संसार में वेद को सबसे प्राचीन पुस्तक का श्रेय प्राप्त है। वेद 4 प्रकार के होते है जो निम्नलिखित है :

  1. ऋग्वेद 
  2. यजुर्वेद
  3. सामवेद
  4. अथर्ववेद

||अग्नेर्ऋग्वेदों वायोर्यजुर्वेद: सुर्य्यात् समावेद:|| – शतपथ ब्राह्मण 

ब्राह्मण ग्रंथों में शतपथ ब्राह्मण में लिखे इस श्लोक का अर्थ है कि “अग्नि” से “ऋग्वेद”, “सूर्य” से “सामवेद” और “वायु” से “यजुर्वेद” प्रकट हुआ। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार अग्नि देव, वायु देव तथा सूर्य देव और अंगिरा ऋषि ने कठिन तप कर के ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद को प्राप्त किए।

सामान्य हिंदी में ऋग्वेद को धर्म, यजु को मोक्ष, साम को काम तथा अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है और इसी के आधार पर ऋग्वेद से “धर्मशास्त्र, यजुर्वेद से “मोक्षशास्त्र, सामवेद से “कामशास्त्र तथा अथर्ववेद से “अर्थशास्त्र की उत्पत्ति हुई।  

आइये अब एकएक कर के, जानते है वेद के इन चारों भागों के बारे : 

1. ऋग्वेद यहाँ ऋग या ऋक का शाब्दिक अर्थ है स्तिथि तथा ज्ञान। यह संसार का सबसे पहला तथा प्राचीन वेद है। ऋग्वेद के 10 मंडल में 1028 सूक्त है तथा इन सूक्तो में 11 हजार मन्त्रे भी है। ऋग्वेद में ऐसे मन्त्र शामिल है जिनसे ईश्वर का आह्वाहन किया जाता है तथा भौगोलिक स्तिथि के भी मन्त्र है। इसके ऋचाओं में ईश्वर की प्रार्थना, देवलोक में उनकी स्तिथि तथा स्तुतियां भी शामिल है। ऋग्वेद में चिकित्सा से सम्बंधित जानकारियां भी है जैसे – मानव चिकित्सा, सौर चिकित्सा, वायु चिकित्सा तथा हवन के द्वारा कीये गए चिकित्सा की जानकारियां। ऋग्वेद के 10वे मंडल में औषधि सूक्त अर्थात दवाइयों का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में औषधियों की संख्या 125 के आस-पास वर्णित की गई है और ये 107 स्थानों पर उपलब्ध है। इन औषधियों में सोम का मुख रूप से उल्लेख है। ऋग्वेद में एक कथा का भी उल्लेख किया गया है जिसमें च्यवनऋषि को पुनः युवा करने की बात वर्णित है। ऋग्वेद की कुल 5 शाखाएं है, जो इस प्रकार है :

  1. शाकल्प 
  2. वास्कल
  3. अश्वलायन
  4. शांखायन
  5. मंडूकायन

2. यजुर्वेद यजुर्वेद का अर्थ समझने के लिए उसे यजुर्वेद के संधि-बिच्छेद से समझते है, जो इस प्रकार है :

यत् + जु = यजु 

यहाँ “यत्” का अर्थ है “गतिशील” और “जु” से तात्पर्य है “आकाश” का तथा इसके आलावा इसका अर्थ है “कर्म” – श्रेष्ठतम कर्मों की प्रेरणा।  यजुर्वेद में मुख रूप से, यज्ञ को सम्पन्न करने की विधियां तथा यज्ञों में उच्चारित की जाने वाले मन्त्र शामिल है। यजुर्वेद में तत्व ज्ञान के अलावा रहस्यमयी ज्ञान का भी वर्णन है। यजुर्वेद में ईश्वर, आत्मा, पदार्थ तथा ब्राह्मण से जुड़े ज्ञान का उल्लेख भी किया गया है। यजुर्वेद गद्यमय है। यजुर्वेद में यज्ञ में उच्चारित करने वाले मन्त्रों का गद्य में उल्लेख किया गया है। यजुर्वेद में लिखे मन्त्र में च्ब्रीहिधान्यों का भी उल्लेख है और इसके अलावा कृषि विज्ञानं, दिव्य वैद्द्य इत्यादि भी शामिल है। यजुर्वेद 2 प्रकार के है जो निम्नलिखित है :

  1. कृष्ण कृष्ण से ही सम्बन्ध है वैशम्पायन ऋषि का तथा कृष्ण की 4 शाखाएं है। 
  2. शुक्ल शुक्ल से ही सम्बन्ध है याज्ञवल्क्य ऋषि का। शुक्ल की 2 शाखाएं है तथा 40 अध्याय भी शामिल हैं।  

3. सामवेद – सामवेद में ‘’साम’’ का शाब्दिक अर्थ है ‘’रूपांतरण’’ तथा ‘’संगीत’’। सामवेद का एक और अर्थ है सौम्यता तथा उपासना। सामवेद में उन सभी ऋचाओं का संगीतमय रूप है जो ऋग्वेद में मौजूद है। सामवेद को गीतात्मक रूप से लिखा गया है अर्थात पूर्णरूप से गीत के रूप में। इसे संगीतशास्त्र का मूल अर्थात नींव माना जाता है। सामवेद में 1824 मंत्र शामिल है जिसमे की 75 मन्त्रों को छोड़कर बाकि के सभी मन्त्र का उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है। सामवेद में इंद्रदेव, अग्निदेव तथा सविता का उल्लेख किया गया है। सामवेद की 3 शाखाएं है तथा मुख रूप से 75 ऋचाएं

4. अथर्ववेद – यहाँ “थर्व” का शाब्दिक अर्थ है “कम्पन” था “अथर्व” का अर्थ है “अकम्पन”। वही व्यक्ति अपने अकंप बुद्धि के बल पर मोक्ष को धारण कर पाता है जो कि अपने ज्ञान से श्रेष्ठ कर्मों को करता है तथा सच्चे मन से परमात्मा की उपासना करता है। अथर्ववेद में रहस्यमयी विद्द्याएँ, जड़ी बूटियां, चमत्कार और जादू तथा आयुर्वेद का उल्लेख है। अथर्ववेद में 20 अध्याय है जिनमे 5687 मंत्र शामिल है तथा इसके 8 खंड है जिनमे भेषज वेद तथा धातु वेद – दो नाम मिलते है।

Frequently Asked Questions

1. वेद कितने प्रकार के होते है?

वेद 4 प्रकार के होते है।

2. सबसे प्राचीन वेद कौन सा है?

सबसे प्राचीन वेद है ऋग्वेद

3. जादू - टोना का उल्लेख किस वेद में है?

जादूटोना का उल्लेख अथर्ववेद में किया गया है।

4. संगीत का सम्बन्ध किस वेद से है?

संगीत का सम्बन्ध सामवेद से है।

5. यज्ञ में उच्चारण करने वाले मन्त्रों का उल्लेख किस वेद में है?

यज्ञ में उच्चारण करने वाले मन्त्रों का उल्लेख यजुर्वेद में है।