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यक्षिणी साधना करने से पहले सावधानियां अपनाएं (Yakshini Sadhna Karne Se Pahle Savdhaniya Apnaye)

यक्षिणी साधना करने से पहले सावधानियां अपनाएं (Yakshini Sadhna Karne Se Pahle Savdhaniya Apnaye)

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ईश्वर की पूजा तो हर कोई करता है – किसी न किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए लेकिन क्या आपको पता है अप्सरा, किन्नरी, योगिनी, की तरह ही यक्षिणियां (Yakshini) भी हमारी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकती हैं। जी हाँ, आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि यक्षिणियां बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली होती है। 

हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार कुल 36 यक्षिणियां (36 yakshinis) हैं और उनमें अलग – अलग वर देने की क्षमता भी होती हैं। साधना के समय उन्हें अपनी माता, बहन या पत्नी के रूप में वरण किया जाता है। लेकिन, उनकी साधना अत्यधिक कठिन है जिसकी तैयारी साधक को पहले से करनी पड़ती है।

यक्ष शब्द का अर्थ होता है ‘’जादुई शक्ति‘’। प्राचीन काल, में मुख्य रूप से कुछ रहस्यमय जातियां थीं, जो की इस प्रकार से थी : देव, राक्षस, दैत्य, दानव, अप्सराएं, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, पिशाच, वानर, भल्ल, रीझ, किरात, नाग आदि। ये सभी रहस्यमय जातियां मनुष्यों से कुछ अलग थे। इन सभी के पास जादुई शक्तियां होती थी और ये सभी मनुष्यों की किसी न किसी प्रकार से मदद करते थे। देवताओं के बाद दैवीय शक्तियों के मामले में “यक्ष” ही प्रथम स्थान पर आता है। यक्षिणियां सकारात्मक शक्तियां होती हैं और पिशाचिनियां नकारात्मक शक्तियां। बहुत से लोग जिन्हें यक्षिणी साधना का ज्ञान नहीं वो यक्षिणियों को भी भूतनी या प्रेतनी की तरह ही मानते हैं। इसलिए साधक अपने विवेक का सही ढंग से उपयोग करें।

यक्षिणी अपने साधक के सामने एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर सी स्त्री के रूप में यक्षिणी साधना के उपरान्त आती है। यक्षिणी साधना में 8 यक्ष और यक्षिणियां प्रमुख और शक्तिशाली होते हैं। ये आठ यक्षिणियों ने नाम इस प्रकार है :

1. सुर सुन्दरी, 

2. मनोहारिणी, 

3. कनकावती, 

4. कामेश्वरी, 

5. रति प्रिया, 

6. पद्मिनी, 

7. नटी और 

8. अनुरागिणी

यक्षिणी साधना में सबसे पहले चान्द्रायण का व्रत (Chandrayan ka Vrat) किया जाता है। ये व्रत इतना कठिन है कि इसमें दिन के अनुसार भोजन की कौर ली जाती है यानि की प्रतिपदा के दिन एक कौर भोजन, दूज के दिन 2 कौर भोजन और इसी प्रकार से 1-1 कौर का भोजन बढ़ाते हुए पूर्णिमा तक और फिर पूर्णिमा से 1-1 कौर भोजन कम करते हुए अमावस्या तक इस व्रत को करना होता है। इसमें यह नियम है की आप एक कौर भोजन से आलावा और कुछ भी नहीं खा सकते है। यक्षिणी साधना करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

इसके बाद यक्षिणी साधना में कुल “16 रुद्राभिषेक” भी किए जाते हैं, और साथ में महामृत्युंजय मंत्र51 हजार तथा कुबेर मंत्र51 हजार बार जप करने के बाद भगवान भूतनाथ शिवजी महाराज से आज्ञा ली जाती है।

यक्षिणी साधना की इतनी शक्ति होती है कि सपनों के माध्यम से अगर साधक के श्रेष्ठ कर्म हों तो भोलेनाथ स्वयं सपने में आते हैं या शुभ स्वप्न या अशुभ स्वप्न दिखलाते है जिसे संकेत के तौर पर साधक को समझ कर उसके अनुरूप प्रार्थना करनी होती है। अशुभ स्वप्न होने पर साधना वर्जित मानी जाती है अर्थात साधना नहीं करनी चाहिए। यदि साधना की गई तो वह फलीभूत नहीं होगी या फिर नुकसान ही नुकसान होगा। साधना के दौरान साधक को बहुत से बातों का ध्यान रखना होगा जैसे की : ब्रह्मचर्य, हविष्यान्न आदि ।

साधना में और भी कई नियम माने जाते हैं तथा किसी विशेष प्रयोगों द्वारा यंत्र प्राप्त कर उसकी प्राण-प्रतिष्ठिता किया जाता है। इसमें जरूरी वस्तुएं, जो हर एक देवी की अलग-अलग होती हैं, उनका प्रयोग साधना में किया जाता है।

अंत में, “पूर्णिमा” के दिन सारी रात जप तथा पूजन किया जाता है। ये सारी तांत्रिक साधनाएं बहुत ही शक्तिशाली या यूँ कह सकते है कि तलवार की धार पर चलने के समान होती हैं। जरा-सी चूक हुई तो नुकसान होगा ही होगा। किसी भी आलसी तथा कायर व्यक्ति को यक्षिणी साधना के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।

हो सके तो परिवार के सदस्यों को अपनी साधना करने के बारे में पहले से ही बता दें ताकि कोई बाधा – विघ्न यक्षिणी साधना के बीच में उत्पन्न न हो। मेहमान, फोन, इत्यादि का भी व्यवधान होता है, इसलिए इन सब से दूर रहना ही ठीक रहता है। यक्षिणी साधना एकांत में ही करें तथा यक्षिणी साधना और पूजा के नियम किसी योग्य पंडित से पूछकर ही करना सही होगा यदि मालूम न हो तथा जैसा गुरु का निर्देश हो, वैसा ही करें।

यक्षिणी साधना की तैयारी :

  • यह साधना किसी एकांत स्थान पर करनी होती है, जहां कोई भी बाधा या विघ्न न आये।
  • यक्षिणी साधना मध्य रात्रि में ही की जाती है।
  • यक्षिणी साधना के पहले “यक्षिणी” की तस्वीर साधना स्थल पर लगा देना चाहिए।
  • यक्षिणी साधना काल में किसी भी तरह की अनुभूति हो तो उसे किसी को नहीं बताना चाहिए।
  • हवन और पूजा से सम्बंधित सम्पूर्ण सामग्री पहले से ही एकत्रित कर लें।
  • साधना स्थल पर पर्याप्त जल, भोजन और अन्य प्रकार की रोज की जरूरत की चीजें रख लें ताकी साधना छोड़कर कहीं जाना न पड़े।

यक्षिणी साधना की विधि :

  • किसी शुभ मुहूर्त लाल चंदन से भोजपत्र पर अनार की कलम द्वारा उक्त यक्षिणी का नाम लिखकर उसे आसन पर प्रतिष्ठित करने के बाद उचित रीति से आह्वान करते हुवे उनकी पूजा करें।
  • इसके पश्चात जिस भी यक्षिणी की तस्वीर आपने लगाई है उसी के मंत्र का जप आरंभ करें। मंत्रों की संख्या कम से कम 10 हजार और ज्यादा से ज्यादा 1 लाख तक होनी चाहिए।
  • जितने भी मंत्र जप का संकल्प लिया है उतना जप करने के बाद हवन करें। कम से कम 108 बार हवन में आहुति देकर हवन करें।
  • जप और हवन की समाप्ति के बाद साधक को वहीं सो जाना चाहिए। यह यक्षिणी साधना की संक्षिप्त विधि है। किन्तु आप ये यक्षिणी साधना किसी जानकार से पूछकर ही आरम्भ करें।

Frequently Asked Questions

1. क्या यक्षिणी साधना करने से मनोकामना की पूर्ति होती है ?

जी हाँ, यक्षिणी साधना करने से मनोकामना की पूर्ति होती है।

2. यक्षिणी साधना की पूजा दिन में करें या रात में ?

यक्षिणी साधना की रात में करनी चाहिए।

3. यक्षिणी साधना में कितनी बार रुद्राभिषेक करनी चाहिए ?

यक्षिणी साधना में 16 बार रुद्राभिषेक करनी चाहिए।

4. कुल कितनी तरह की यक्षिणियां होती है जिन्हें पूजा जाता है ?

कुल 36 यक्षिणियां होती है जिन्हें पूजा जाता है।

5. यक्षिणी साधना में महामृत्युंजय मंत्र की जाप कितनी बार करनी चाहिए ?

यक्षिणी साधना में महामृत्युंजय मंत्र की जाप 51 हजार बार करनी चाहिए।