Sign In

आश्लेषा नक्षत्र : आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक (Ashlesha Nakshatra : Ashlesha Nakshatra Me Janme Log Tatha Purush Aur Stri Jatak)

आश्लेषा नक्षत्र : आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक (Ashlesha Nakshatra : Ashlesha Nakshatra Me Janme Log Tatha Purush Aur Stri Jatak)

Article Rating 4.1/5

वैदिक ज्योतिष में कुल “27 नक्षत्र” है जिनमें से एक है “आश्लेषा नक्षत्र” (Ashlesha Nakshatra)। यह आकाश मंडल तथा 27 नक्षत्रों में “नवम स्थान” पर है। इस नक्षत्र का विस्तार राशि चक्र में 10640 से लेकर 12000 अंश तक है। आश्लेषा नक्षत्र में 6 तारें होते है। “आश्लेषा” को “सर्पमूल” भी कहा जाता है। आज हम आपको आश्लेषा नक्षत्र में जन्में लोग तथा पुरुष और स्त्री जातक की कुछ मुख्य विशेषताएं बतलायेंगे, पर सबसे पहले जानते है, आश्लेषा नक्षत्र से जुड़ी कुछ जरुरी बातें :

आश्लेषा नक्षत्र की आकृति पहिये के समान होती है। आश्लेषा का शाब्दिक अर्थ है “आलिंगन”। “आश्लेषा” “चंद्र देव” की 27 पत्नियों में से एक है तथा ये प्रजापति दक्ष की पुत्री है। 

  • नक्षत्र – “आश्लेषा”
  • आश्लेषा नक्षत्र देवता – “ सर्प”
  • आश्लेषा नक्षत्र स्वामी – “बुध”
  • आश्लेषा राशि स्वामी – “चंद्र”
  • आश्लेषा नक्षत्र राशि – “कर्क”
  • आश्लेषा नक्षत्र नाड़ी – “अन्त्य”
  • आश्लेषा नक्षत्र योनि – “मार्जार”
  • आश्लेषा नक्षत्र वश्य – “जलचर”
  • आश्लेषा नक्षत्र स्वभाव – “तीक्ष्ण”
  • आश्लेषा नक्षत्र महावैर – “मूषक”
  • आश्लेषा नक्षत्र गण – “राक्षस”
  • आश्लेषा नक्षत्र तत्व – “जल”
  • आश्लेषा नक्षत्र पंचशला वेध – “धनिष्ठा”

“सर्प”- “आश्लेषा नक्षत्र” के देवता है इसलिए जातक सांप की तरह भयंकर फुफकारने वाला, गुस्सा तो जैसे इनकी नाक पर रखा होता है। ये हर बात में उत्तेजित हो जाते है। ये पापाचरण में आगे और चकमा देने में माहिर होते है। इनकी आंखें छोटी पर क्रूर, खतरनाक और सख्त आचरण इनकी पहचान होती है। – पराशर

आश्लेषा नक्षत्र का वेद मंत्र :

।। ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:।
ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: ।
ॐ सर्पेभ्यो नम:।।

आश्लेषा नक्षत्र में चार चरणें होती है। जो इस प्रकार है :

1. आश्लेषा नक्षत्र प्रथम चरण : आश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण के स्वामी “बृहस्पति देव” है तथा इस चरण पर बुध, गुरु और चन्द्रमा का प्रभाव ज्यादा रहता है। इस चरण के जातक साथियों और वरिष्ठों से प्रतिस्पर्धा करने वाले होते है। इस चरण के जातक लम्बे कद, स्थूल देह, सुन्दर नैन-नख्स, लम्बे दांत तथा गोरे रंग के होते है। आश्लेषा नक्षत्र के जातक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन मेहनत करते है। ये कला के क्षेत्र में माहिर होते है ।

2. आश्लेषा नक्षत्र द्वितीय चरण : आश्लेषा नक्षत्र के द्वितीय चरण के स्वामी ‘‘शनि देव” है। इस चरण पर चंद्र, बुध तथा शनि ग्रह का प्रभाव होता है। ये सौदे, ठगबाजी में माहिर होते है। इस चरण के जातक का गौर वर्ण, छितरे अल्प रोम, बड़े आकार का सिर और जांघ होता है। आश्लेषा नक्षत्र के नकारात्मक लक्षण इसी चरण में ज्यादा देखने को मिलते है। इस चरण में जातक दूसरों को हतोत्साहित करने वाला एक अविश्वसनीय व्यक्ति होता है। इस चरण के जातकों का या तो खुद का मकान नहीं होता या फिर किराए के मकान में जीवन व्यतीत करते है ।

3. आश्लेषा नक्षत्र तृतीय चरण : इस चरण के स्वामी “शनि ग्रह” है। इस चरण पर चंद्र, शनि तथा बुध का प्रभाव होता है। इस चरण के जातक किसी रहस्य को छुपाए रखने या योजना बनाने में माहिर होते है। इस चरण के जातक बड़े सिर वाला, धीमी चाल, चपटी नाक और सावले रंग का होता है। तीसरे चरण के जातक भरोसेमंद होते है। इन्हें चर्म रोग की शिकायत होती है।

4. आश्लेषा नक्षत्र चतुर्थ चरण : इस चरण के स्वामी “गुरु ग्रह” है। इस चरण पर चंद्र, गुरु तथा बुध का प्रभाव होता है। इस चरण के जातक गोरे रंग, मछली के सामान आँखे, लम्बी दाढ़ी, पतले घुटने तथा पतले होंठ वाले होते है। ये बुद्धिमान और भ्रमणशील भी होते है। इस चरण के जातक जीवन में संघर्ष अधिक करते है। ये दूसरों को शिकार बनाने के जगह खुद ही शिकार बन जाते है। यदि अश्लेषा नक्षत्र बुरे प्रभाव में हो तो व्यक्ति को गंभीर मनोरोग हो जाता है।    

आइये जानते है, आश्लेषा नक्षत्र के पुरुष और स्त्री जातकों के बारे में :

आश्लेषा नक्षत्र के पुरुष जातक :

इस लग्न के जातक वाचाल, किसी का एहसान न मानने वाला, दिखावटी ईमानदार, संगठन वादी, मनमोहक भाषी, चरित्रवान, राजनीति में सफलता प्राप्त करने वाला होता है। इस नक्षत्र में कुछ ऐसे भी जातक होते है जो कमजोर दिल के, कायर, मृदुभाषी और घमंडी होते है। ये किसी पर भी विश्वास नहीं करते जबकि ये खुद कालाबाजारी या चोरों का साथी होते है। ये अच्छा बुरा या अमीर गरीब में भेद नहीं करते। ये स्वतंत्रता प्रेमी होते है। ये छल-कपट या धोखेबाजी से किसी की संपत्ति नहीं हड़पते। ये शांत और सौभाग्यशाली होते है। जातक अपने परिवार में बड़ा होता है और कला या वाणिजय के क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करता है। इनकी पत्नी इन्हें नहीं समझती और संपत्ति को परिवार में बाटना नहीं चाहती। इन्हें जीवन के 35 या 36वें वर्ष में आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन 40वें वर्ष में अचानक ही आर्थिक लाभ होता है।

आश्लेषा नक्षत्र के स्त्री जातक :

इस नक्षत्र की स्त्रियों में भी पुरुष जातकों के तरह ही गुण और अवगुण होते है। आश्लेषा नक्षत्र में यदि मंगल स्थित हो तो स्त्री सुंदर होती है। इस नक्षत्र की स्त्रियां अपने ही नियंत्रण में रहती है। ये चरित्रवान, शर्मीली, मान – सम्मान पाने वाली और अपने बातों से शत्रुओं को हराने वाली होती है। ये हर कार्य में दक्ष होती है। शिक्षित होने पर प्रशासनिक कार्य और अशिक्षित होने पर मछली पालन से जुड़ी होती है। ये कार्य में दक्ष होती है। इन्हें अपने ससुराल वालों से सावधान रहना चाहिए क्योंकि वे पति के साथ सम्बन्ध विच्छेद करवाने में लगे रहते है।

Frequently Asked Questions

1. आश्लेषा नक्षत्र के देवता कौन है?

आश्लेषा नक्षत्र के देवता – सर्प है।

2. आश्लेषा नक्षत्र का स्वामी ग्रह कौन है?

आश्लेषा नक्षत्र का स्वामी ग्रह – बुध है।

3. आश्लेषा नक्षत्र के लोगों का भाग्योदय कब होता है?

आश्लेषा नक्षत्र के लोगों का भाग्योदय – 40वें वर्ष में होता है।

4. आश्लेषा नक्षत्र की शुभ दिशा कौन सी है?

आश्लेषा नक्षत्र की शुभ दिशा – दक्षिण है।

5. आश्लेषा नक्षत्र का कौन सा गण है?

आश्लेषा नक्षत्र का राक्षस गण है।

6. आश्लेषा नक्षत्र की योनि क्या है?

आश्लेषा नक्षत्र की योनि – मार्जार है।

7. आश्लेषा नक्षत्र की वश्य क्या है?

आश्लेषा नक्षत्र की वश्य –जलचर है।