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ब्राह्मण और उनके 8 प्रकार ( Brahmana Aur Unke 8 Prakar)

ब्राह्मण और उनके 8 प्रकार ( Brahmana Aur Unke 8 Prakar)

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ब्राह्मण अर्थात वो लोग जो ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए। जिन्हें जातियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। प्राचीन काल के हर जाति, समुदाय के लोग ब्राह्मण बनने के लिए उत्सुक रहते थे। ब्राह्मण बनने का हक़ आज हर किसी को है। इसलिए, किसी भी जाती, प्रान्त या समुदाय के लोग “गायत्री दीक्षा” प्राप्त कर के ब्राह्मण बन सकते है। लेकिन, ब्राह्मण बनने के लिए आवश्यक है कुछ नियमों का पालन करना।यहाँ, उस ब्राह्मण समाज के लोगों की बात नहीं हो रही जिनमें अधिकत्तर ब्राह्मणों ने अपने कर्म और कार्य छोड़कर दूसरे कार्यों को अपना लिया। वैसे, उस तरह के ब्राह्मण अब नहीं रहें लेकिन कहलाते अभी भी ब्राह्मण ही है।

स्मृति-पुराणों के अनुसार ब्राह्मण के 8 भाग होते है :

  1. मात्र,
  2. ब्राह्मण,
  3. श्रोत्रिय,
  4. अनुचान,
  5. भ्रूण,
  6. ऋषिकल्प,
  7. ऋषि और
  8. मुनि।

इन 8 प्रकार के ब्राह्मणों के बारे में श्रुति से पहले बताया गया हैं। इसके अलावा वंश, सदाचार और विद्या से ऊंचे स्थान प्राप्त करने वाले ब्राह्मण त्रिशुक्लकहलाये। ब्राह्मण के और भी कई नाम है जैसे की : धर्मज्ञ, विप्र और द्विज।

आइये जानते है ब्राह्मणों के 8 प्रकार के बारे में :

1. मात्र :

वो लोग जो जाति से तो ब्राह्मण होते हैं लेकिन कर्म से ब्राह्मण नहीं होते उन्हें मात्र कहा जाता है। सिर्फ ब्राह्मण कुल में जन्म ले लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता। इसके लिए कई नियमों के पालन भी करने होते है। कुछ ऐसे भी ब्राह्मण है जो ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार तथा वैदिक और मंगल कार्यों से दूर ही रहते है। 

2. ब्राह्मण : ब्राह्मणों में कुछ खास गुण होते है, जैसे की: ईश्वरवादी, ब्रह्मगामी, वेदपाठी, एकांतप्रिय, सरल, सत्यवादी और बुद्धिमान। कई तरह के पूजा-पाठ तथा मांगलिक कर्म को त्याग कर जो वेद सम्मत आचरण अपनाता है वह ब्राह्मण कहलाता है।

3. श्रोत्रिय : स्मृति पुराण के अनुसार जो भी व्यक्ति वेद की किसी भी एक शाखा को “कल्प” तथा 6 अंगों के साथ पढ़कर “ब्राह्मणोचित6 कर्मों में संलग्न रहता है, वही ‘’श्रोत्रिय’’ कहलाता है।

 4. अनुचान : जो भी मनुष्य वेद और वेदांगों का “तत्वज्ञ”, शुद्ध चित्त, पापरहित, श्रेष्ठ, तथा श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान होता है, वही ‘’अनुचान‘’ कहलाता है।

 5. भ्रूण : ये भी अनुचान की तरह ही सिर्फ यज्ञ तथा स्वाध्याय में ही संलग्न रहते है, इनका इनके इन्द्रियों पर वश रहता है और स्वभाव से संयम बरतने वाले होते है ऐसे व्यक्तियों को ही भ्रूण कहा गया है। 

 6. ऋषिकल्प : जो भी लोग समस्त वेदों, पुराणों, स्मृतियों तथा लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर अपने मन और इंद्रियों को अपने वश में करके अपना पूरा जीवन आश्रम में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए बिताते है उन्हें ही ऋषिकल्प कहा जाता है।

 7. ऋषि : ऐसे लोग जो सम्यक आहार-विहार आदि करते हुए जीवन भर ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह को त्याग कर जीवन जीते है और जिनके श्राप और आशीर्वाद फलित होने लगते है। उन सत्यवान और समर्थ व्यक्ति को ही “ऋषि” कहा गया है।

8. मुनि : जो मनुष्य निवृत्ति मार्ग में अवस्थित, समस्त तत्वों का ज्ञाता, जितेन्द्रिय, ध्यान निष्ठ, तथा सिद्ध होते है ऐसे ब्राह्मण को ‘’मुनि’’ कहा जाता है।

ऊपर बताए गए सभी तरह के ब्राह्मणों में से अधिकतर ‘मात्र’ ब्राह्मण ही होते है।

ब्राह्मण शब्द का प्रयोग सबसे पहले अथर्ववेद के उच्चारणकर्ता महर्षियों के लिए किया गया था। उसके बाद प्रत्येक वेद के अर्थ को समझने के लिए ग्रंथ लिखे गए जो की “ब्राह्मण साहित्य” कहलाया। ब्राह्मण का सम्बन्ध उस समय किसी भी जाति या समाज से नहीं था।

समाज और समुदाय के निर्माण के बाद देखा जाए तो भारत में सबसे ज्यादा वर्गीकरण या विभाजन ब्राह्मणों में ही पाया जाता है, जैसे की : मैथिल, सरयूपारीण, जिझौतिया, कान्यकुब्ज, मराठी, भार्गव, बंगाली, कश्मीरी, गौड़, सनाढ्य, महा-बामन इत्यादि। इसी प्रकार, ब्राह्मण जाती में ही सबसे ज्यादा उपनाम (टाईटल या सरनेम) भी प्रचलित है।

ब्राह्मणों में किस तरह से उपनामों की उत्पत्ति हुई, आइये जानते है कुछ उपनामों के पीछे छिपे रहस्य के बारे में :

  • पाठक : एक वेद को पढ़ने वाला ब्राह्मण ही पाठक कहलाया ।
  • द्विवेदी : दो वेदों को पढ़ने वाले द्विवेदी कहलाये, जो बाद में दुबे कहलाने लगे।
  • त्रिवेदी : तीन वेदों को पढ़ने वाले ब्राह्मण त्रिवेदी कहे गए, जिसे बाद में त्रिपाठी कहा जाने लगा और ये आज के समय में तिवारी सरनेम से भी जाने जाते है।
  • चतुर्वेदी : चार वेदों को पढ़ने वाले ब्राह्मण चतुर्वेदी कहलाए, जो बाद में चौबे कहलाने लगे।
  • शुक्ला : शुक्ल यजुर्वेद को पढ़ने वाले ब्राह्मण शुक्ल या शुक्ला कहलाने लगे । 
  • पंडित और उपाध्याय : चारो वेद, पुराण और उपनिषदों को पढ़ने वाले पंडित कहलाये, जो बाद में पांडे, पाण्डेय, पंडिया, और पाध्याय हो गए। ये पाध्याय ही आगे चलकर उपाध्याय हुआ।
  • शास्त्री : शास्त्र का ज्ञान धारण करने वाले या “शास्त्रार्थ” करने वाले ब्राह्मण “शास्त्री” की उपाधि से विभूषित हुए।

इनके अलावा प्रसिद्द महर्षि, ऋषि के कुल के ब्राह्मणों ने अपने गोत्र या ऋषिकुल के नाम को ही “उपनाम” की तरह अपना लिया, जैसे की : भगवान परसुराम का कुल भी महर्षि भृगु के नाम पर भृगु कुल पड़ा। आगे चलकर भृगु कुल के वंशज ही “भार्गव” कहलाए, और इसी प्रकार भरद्वाज, अग्निहोत्री, गौतम, गर्ग, आदि उपनाम आएं।कुछ ब्राह्मण ऐसे भी हुए जिन्हें अनेक शासकों ने भी कई तरह की उपाधियां दी, जिसे बाद में उनकी संतान अर्थात वंशजों ने उपनाम की तरह इस्तेमाल किया और इस तरह से ब्राह्मणों के सभी उपनाम प्रचलन में आए, जैसे की : महारावल, रावल, राव, कानूनगो, जमींदार, पटवारी, मांडलिक, चौधरी,  देशमुख, प्रधान, चीटनीस, मुखर्जी, बनर्जी, जोशी, शर्मा, मिश्रा, भट्ट, विश्वकर्मा, मैथली, धर, झा, मेंदोला, आपटे श्रीनिवास, आदि अनेकों उपनाम है जिनका अपना अलग अलग इतिहास है।

Frequently Asked Questions

1. मात्र ब्राह्मण किसे कहते है ?

वो लोग जो जाति से तो ब्राह्मण होते हैं लेकिन कर्म से ब्राह्मण नहीं होते उन्हें मात्र कहा जाता है।

2. ‘श्रोत्रिय’ ब्राह्मण किसे कहते है ?

स्मृति पुराण के अनुसार जो भी व्यक्ति वेद की किसी भी एक शाखा को “कल्प” तथा 6 अंगों के साथ पढ़कर “ब्राह्मणोचित” 6 कर्मों में संलग्न रहता है, वही श्रोत्रियकहलाता है।

3. अनुचान ब्राह्मण किसे कहते है ?

जो भी मनुष्य वेद और वेदांगों का “तत्वज्ञ”, शुद्ध चित्त, पापरहित, श्रेष्ठ, तथा श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान होता है, वही ‘’अनुचान‘’ कहलाता है।

4. मुनि ब्राह्मण किसे कहते है ?

जो मनुष्य निवृत्ति मार्ग में अवस्थित, समस्त तत्वों का ज्ञाता, जितेन्द्रिय, ध्यान निष्ठ, तथा सिद्ध होते है ऐसे ब्राह्मण को मुनिकहा जाता है।

5. पाठक किसे कहते है ?

एक वेद को पढ़ने वाला ब्राह्मण ही पाठक कहलाया।

6. शास्त्री की उपाधि किसे दी गयी थी ?

जिन ब्राह्मणों को शास्त्रों का ज्ञान था उन्हें ही शास्त्री की उपाधि दी गयी।

7. भगवान परशुराम के कुल का नाम क्या था ?

भगवान परशुराम के कुल का नाम भृगु कुल था।