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दरशन दो घनश्याम नाथ मोरी, अँखियाँ प्यासी रेमन मंदिर की ज्योति जगादो, घट घट बासी रे
मंदिर मंदिर मूरत तेरीफिर भी ना दीखे सूरत तेरीयुग बीते ना आई मिलन कीपूरणमासी रे …
द्वार दया का जब तू खोलेपंचम सुर में गूंगा बोलेअंधा देखे लंगड़ा चल करपहुँचे कासी रे …
पानी पी कर प्यास बुझाऊँनैनों को कैसे समझाऊँआँख मिचौली छोड़ो अबमन के बासी रे …
निबर्ल के बल धन निधर्न केतुम रख वाले भक्त जनों केतेरे भजन में सब सुख पाऊँमिटे उदासी रे …
नाम जपे पर तुझे ना जानेउनको भी तू अपना मानेतेरी दया का अंत नहीं हैहे दुख नाशी रे …
आज फैसला तेरे द्वार परमेरी जीत है तेरी हार परहार जीत है तेरी मैं तोचरण उपासी रे …
द्वार खड़ा कब से मतवालामांगे तुम से हार तुम्हारीनरसी की ये बिनती सुनलोभक्त विलासी रे …
लाज ना लुट जाये प्रभु तेरीनाथ करो ना दया में देरीतीन लोक छोड़ कर आओगंगा निवासी रे …