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गर्भाधान संस्कार (Garbhadhan Sanskar)

गर्भाधान संस्कार (Garbhadhan Sanskar)

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आज के समय में हर कोई आधुनिकीकरण में इतना व्यस्त हो गया है कि अपने सनातन संस्कृति को भूल ही बैठे है और इस बीच सबने गर्भाधान संस्कार को पूरी तरह से ही भुला दिया है। आज के समय में गर्भाधान को संस्कार की भांति करना तो जैसे लुप्त हो चुका है और इसके दुष्प्रभाव भी हमें देखने को मिल रहे है। गलत रीति रिवाज और गलत मुहूर्त में गर्भाधान करने से रोगी व निकृष्ट संतान की प्राप्ति होती है। एक चरित्रवान, स्वस्थ और आज्ञाकारी संतान भगवान का वरदान माना जाता है। लेकिन, यह तभी संभव है जब गर्भाधान सही रीति रिवाजों द्वारा सम्पन्न हो। गर्भधान संस्कार के बारे में हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है :

।।जन्मना जायते शुद्रऽसंस्काराद्द्विज उच्यते।।

अर्थात : जन्म से हर कोई शूद्र होता है पर माता, पिता और परिवार द्वारा सही ज्ञान और संस्कार देकर ही संतान को द्विज बनाया जाता है।

इसके अलावा स्मृतिसंग्रह में भी गर्भाधान का उल्लेख किया गया है :

।।निषेकाद् बैजिकं चैनो गार्भिकं चापमृज्यते।।
।।षेत्रसंस्कारसिद्धिश्च गर्भाधानफलं स्मृतम्।।

अर्थात : यदि कोई विधिवत तरीके से गर्भाधान संस्कार करे तो उसे श्रेष्ठ और चरित्रवान संतान की प्राप्ति होती है। इस संस्कार द्वारा वीर्य संबंधी पापों का नाश हो जाता है। गर्भाधान संस्कार का यही फल है ।

विवाह के पश्चात संतान को जन्म देना प्रत्येक विवाहित जोड़ों का कर्तव्य होता है। जहाँ एक तरफ स्त्री की पूर्णता उसके माँ बनने से होती है वहीं पुरुष का पिता बन जाने से पितृ – ऋण से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि, षोडश संस्कारों में उल्लेखित क्रम में “गर्भाधान” को प्रथम संस्कार कहा गया है।    

आइये अब जान लेते है, गर्भाधान संस्कार करते समय कौन – कौन सी बातों का ध्यान रखना जरूरी है :

गर्भाधान के लिए सही समय : (Garbhadhan Sanskar Ke Liye Sahi Samay)

स्वस्थ और चरित्रवान संतान के लिए यह बहुत ही जरूरी है कि गर्भाधान संस्कार उचित समय पर ही किया जाए। उचित समय अर्थात उचित मुहूर्त। गर्भाधान संस्कार क्रूर या पापी ग्रहों के नक्षत्र में नहीं करना चाहिए। जब भी पति – पत्नी के गोचर में चंद्रमा, पंचमेश या शुक्र ग्रह अशुभ भाव में उपस्थित हों तो गर्भाधान संस्कार करना सही नहीं होता। यदि ऐसा करना ही हो तो अनिष्टकारी ग्रहों के नाम पर शांति पूजा अवश्य कराएं। शास्त्र के अनुसार रजोदर्शन के प्रथम चार रातों के अलावा 11वीं और 13वीं रात्रि में गर्भाधान संस्कार नहीं करना चाहिए। गर्भाधान संस्कार हमेशा सूर्यास्त के बाद ही करनी चाहिए। साथ ही साथ गर्भाधान कभी भी दक्षिण दिशा की ओर मुख करके नहीं करनी चाहिए। गर्भाधान वाला कक्ष पुरे तरह से साफ़ सुथरा होना चाहिए। गर्भधान के समय पति पत्नी की सोच विशुद्ध होनी चाहिए।

गर्भाधानसे पूर्व करें प्रार्थना व संकल्प : (Garbhadhan Sanskar se Purv Kare Prarthna V Sankalp)

गर्भधान संस्कार वाले दिन सुबह भगवान श्री गणेश जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही अपने कुलदेवी और कुलदेवता तथा पूर्वजों से भी आशीर्वाद जरूर लें। मान्यता है कि गर्भाधान करने से पहले प्रार्थना और संकल्प अवश्य करना चाहिए और ईश्वर से श्रेष्ठ आत्मा को संतान रूप में पाने के लिए विनती करनी चाहिए। गर्भाधान के समय पति, पत्नी की मनोदशा तथा वातावरण जितना शुद्ध होगा श्रेष्ठ और पवित्र आत्मा का गर्भ में प्रवेश की सम्भावना उतना ही बढ़ जाता है।

गर्भाधान संस्कार के लिए सम और विषम रात्रियों की महत्ता : (Garbhadhan Sanskar Ke Liye Sam Aur Visham Ratriyon Ki Mahatta)

गर्भाधान संस्कार में हर रात्रि की विशेष महत्ता होती है। मान्यता है कि, यदि सम रात्रियों में गर्भधान किया जाता है तो पुत्र का जन्म होता है और विषम रातों में गर्भधान किया जाये तो पुत्री के जन्म की सम्भावना बढ़ जाती है। सोलहवीं रात्रि में किया गया गर्भाधान श्रेष्ठ सु-पुत्र फलदायक माना गया है। 

गर्भधारण के बाद क्या करना चाहिए? (Garbh Dharan Ke Baad Kya Karna Chahiye)

गर्भधारण के बाद, गर्भ में शिशु चैतन्य जीव के अवस्था में होता है और शिशु हर बात को सुन सकता है और ग्रहण भी कर सकता है। मान्यता है कि माता की गर्भ में शिशु के आ जाने के बाद से माता द्वारा शिशु को ज्ञान व संस्कार दिया जाता है। हमारे पूर्वज गर्भाधान संस्कार से भली भांति परिचित थे इसलिए उन्होंने हमें गर्भाधान संस्कार की महत्ता बताई। महर्षि चरक के अनुसार, गर्भवती होने पर स्त्री तथा पुरुष को शुद्ध और उत्तम भोजन ही करना चाहिए और हमेशा खुश रहना चाहिए।

Frequently Asked Questions

1. गर्भाधान संस्कार के लिए कौन कौन से दिनों की मनाही की गई है?

गर्भाधान संस्कार के लिए, रजोदर्शन के प्रथम चार रातों के अलावा 11वीं और 13वीं रात्रि में गर्भाधान संस्कार नहीं करना चाहिए।

2. क्या सूर्यास्त के पहले गर्भाधान संस्कार कर सकते है?

जी नहीं, मान्यता है कि सूर्यास्त के बाद ही गर्भाधान संस्कार करना चाहिये।

3. जन्म कुंडली के 11वें भाव में चन्द्रमा और सूर्य है तो आयु कितनी होगी?

गर्भाधान के दिन सुबह भगवान श्री गणेश की पूजा और अपने कुलदेवी तथा कुलदेवता और अपने पूर्वजों से आशीर्वाद लेनी चाहिए।

4. सम रात्रि में गर्भाधान करने से क्या होता है ?

सम रात्रि में गर्भाधान करने से पुत्र का जन्म होता है।

5. विषम रात्रि में गर्भाधान करने से क्या होता है ?

जन्म कुंडली में चन्द्रमा का सम्बन्ध अगर किसी भी पुरुष ग्रह से हो तो आयु – 96 वर्ष होती है।

6. 16वीं रात्रि में गर्भाधान करने से क्या होता है ?

16वीं रात्रि में गर्भाधान को श्रेष्ठ सु-पुत्र फलदायी माना जाता है।