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महाकाल स्तुति हिंदी अर्थ सहित | Mahakal Stuti with Hindi Meaning | Free PDF Download

महाकाल स्तुति हिंदी अर्थ सहित | Mahakal Stuti with Hindi Meaning | Free PDF Download

|| ब्रह्मोवाच ||

नमोऽस्त्वनन्तरूपाय नीलकण्ठ नमोऽस्तु ते ।

अविज्ञातस्वरूपाय कैवल्यायामृताय च ॥ १॥

अर्थ – ब्रह्माजी बोले-हे नीलकण्ठ! आपके अनन्त रूप हैं, आपको बार-बार नमस्कार है । आपके स्वरूप का यथावत् ज्ञान किसी को नहीं है, आप कैवल्य एवं अमृतस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ॥ १॥

नान्तं देवा विजानन्ति यस्य तस्मै नमो नमः ।

यं न वाचः प्रशंसन्ति नमस्तस्मै चिदात्मने ॥ २॥

अर्थ – जिनका अन्त देवता नहीं जानते, उन भगवान शिव को नमस्कार है, नमस्कार है । जिनकी प्रशंसा (गुणगान) करने में वाणी असमर्थ है, उन चिदात्मा शिव को नमस्कार है ॥ २॥

योगिनो यं हृदःकोशे प्रणिधानेन निशचलाः ।

ज्योतीरूपं प्रपश्यन्ति तस्मै श्रीब्रह्मणे नमः ॥ ३॥

अर्थ – योगी समाधि में निश्चल होकर अपने हृदयकमल के कोष में जिनके ज्योतिर्मय स्वरूप का दर्शन करते हैं, उन श्रीब्रह्म को नमस्कार है ॥ ३॥

कालात्पराय कालाय स्वेच्छया पुरुषाय च ।

गुणत्रयस्वरूपाय नमः प्रकृतिरूपिणे ॥ ४॥

अर्थ – जो काल से परे, कालस्वरूप, स्वेच्छा से पुरुषरूप धारण करनेवाले, त्रिगुणस्वरूप तथा प्रकृतिरूप हैं, उन भगवान शंकर को नमस्कार है ॥ ४॥

विष्णवे सत्त्वरूपाय रजोरूपाय वेधसे ।

तमोरूपाय रुद्राय स्थितिसर्गान्तकारिणे ॥ ५॥

अर्थ – हे जगत की स्थिति, उत्पत्ति और संहार करनेवाले, सत्त्वस्वरूप विष्णु, रजोरूप ब्रह्मा और तमोरूप रुद्र! आपको नमस्कार है ॥ ५॥

नमो नमः स्वरूपाय पञ्चबुद्धीन्द्रियात्मने ।

क्षित्यादिपञ्चरूपाय नमस्ते विषयात्मने ॥ ६॥

अर्थ – बुद्धि, इन्द्रियरूप तथा पृथ्वी आदि पंचभूत और शब्द-स्पर्शादि पंच विषयस्वरूप! आपको बार-बार नमस्कार है ॥ ६॥

नमो ब्रह्माण्डरूपाय तदन्तर्व्तिने नमः ।

अर्वाचीनपराचीनविश्वरूपाय ते नमः ॥ ७॥

अर्थ – जो ब्रह्माण्डस्वरूप हैं और ब्रह्माण्ड के अन्तः प्रविष्ट हैं तथा जो अर्वाचीन भी हैं और प्राचीन भी हैं एवं सर्वस्वरूप हैं, उन्हें नमस्कार है, नमस्कार है ॥ ७॥

अचिन्त्यनित्यरूपाय सदसत्पतये नमः ।

नमस्ते भक्तकृपया स्वेच्छाविष्कृतविग्रह ॥ ८॥

अर्थ – अचिन्त्य और नित्य स्वरूपवाले तथा सत्-असत् के स्वामिन्! आपको नमस्कार है । हे भक्तों के ऊपर कृपा करने के लिये स्वेच्छा से सगुण स्वरूप धारण करनेवाले! आपको नमस्कार है ॥ ८॥

तव निःश्वसितं वेदास्तव वेदोऽखिलं जगत् ।

विश्वभूतानि ते पादः शिरो द्यौः समवर्तत ॥ ९॥

अर्थ – हे प्रभो! वेद आपके निःश्वास हैं, सम्पूर्ण जगत् आपका स्वरूप है । विश्व के समस्त प्राणी आपके चरणरूप हैं, आकाश आपका सिर है ॥ ९॥

नाभ्या आसीदन्तरिक्षं लोमानि च वनस्पतिः ।

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यस्तव प्रभो ॥ १०॥

अर्थ – हे नाथ! आपकी नाभि से अन्तरिक्ष की स्थिति है, आपके लोम वनस्पति हैं । भगवन्! आपके मन से चन्द्रमा और नेत्रों से सूर्य की उत्पत्ति हुई है ॥ १०॥

त्वमेव सर्व त्वयि देव सर्वं

सर्वस्तुतिस्तव्य इह त्वमेव ।

ईश त्वया वास्यमिदं हि सर्वं

नमोऽस्तु भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥ ११॥

अर्थ – हे देव! आप ही सब कुछ हैं, आपमें ही सबकी स्थिति है । इस लोक में सब प्रकार स्तुतियों के द्वारा स्तवन करने योग्य आप ही हैं । हे ईश्वर! आपके द्वारा यह सम्पूर्ण विश्वप्रपंच व्याप्त है, आपको पुनः-पुनः नमस्कार है ॥ ११॥

॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे ब्रह्मखण्डे महाकालस्तुतिः सम्पूर्णा ॥

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