Sign In

Nirvana Shatakam Lyrics in Hindi | Free PDF Download

Nirvana Shatakam Lyrics in Hindi | Free PDF Download

Reading Time: 2 minutes

निर्वाणषटकम्‌ ( हिन्दी अनुवाद )

मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजो न वायु:
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥

मैं मन नहीं हूँ, न बुद्धि ही, न अहंकार हूँ, न अन्तःप्रेरित वृत्ति;
मैं श्रवण, जिह्वा, नयन या नासिका सम पंच इन्द्रिय कुछ नहीं हूँ
पंच तत्वों सम नहीं हूँ (न हूँ आकाश, न पृथ्वी, न अग्नि-वायु हूँ)
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: 
न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥२॥

मैं नहीं हूँ प्राण संज्ञा मुख्यतः न हूँ मैं पंच-प्राण स्वरूप ही,
सप्त धातु और पंचकोश भी नहीं हूँ, और न माध्यम हूँ
निष्कासन, प्रजनन, सुगति, संग्रहण और वचन का;
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।  

न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ 
मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥३॥ 

न मुझमें द्वेष है, न राग है, न लोभ है, न मोह,
न मुझमें अहंकार है, न ईर्ष्या की भावना 
न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, 
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।  

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् 
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥४॥

न मुझमें पुण्य है न पाप है, न मैं सुख-दुख की भावना से युक्त ही हूँ
मन्त्र और तीर्थ भी नहीं, वेद और यज्ञ भी नहीं
मैं त्रिसंयुज (भोजन, भोज्य, भोक्ता) भी नहीं हूँ
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: 
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥५॥

न मुझे मृत्य-भय है (मृत्यु भी कैसी?), न स्व-प्रति संदेह, न भेद जाति का
न मेरा कोई पिता है, न माता और न लिया ही है मैंने कोई जन्म
कोई बन्धु भी नहीं, न मित्र कोई और न कोई गुरु या शिष्य ही
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ 
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥६॥ 

मैं हूँ संदेह रहित निर्विकल्प, आकार रहित हूँ 
सर्वव्याप्त, सर्वभूत, समस्त इन्द्रिय-व्याप्त स्थित हूँ   
न मुझमें मुक्ति है न बंधन; सब कहीं, सब कुछ, सभी क्षण साम्य स्थित
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।
आचार्य शंकर रचित निर्वाण षटकम्‌ ||