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पंचकन्या और उनसे जुड़ी पौराणिक कथा (Panchakanya Se Judi Pauranik Katha)

पंचकन्या और उनसे जुड़ी पौराणिक कथा (Panchakanya Se Judi Pauranik Katha)

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सनातन धर्म शास्त्रों के पन्नों को अगर पलटकर देखा जाये तो कई अनगिनत नारियों ने एक से बढ़कर एक काम किया और संसार में सनातन धर्म की स्थापना और अपने पत्नीधर्म को निभाने की खातिर अपने प्राण तक त्याग दी। यूँ तो हिन्दू धर्म में कई देवियां और नारियां है जिन्होंने हिन्दू इतिहास के पन्नों पर अपने छाप छोड़ें है पर आज हम बात करेंगे “पंचकन्याओं” के बारे में, जिनके त्याग और बलिदान की गाथा आज भी गाई जाती है। तो, चलिए शुरू करते है :

हिन्दू धर्मशास्त्र तथा पुराणों के अनुसार पंचकन्या यानी की 5 स्त्रियां पवित्र, पतिव्रता तथा पुण्यात्मा थी। ब्रह्मपुराण में इन 5 स्त्रियों का वर्णन इस प्रकार किया गया है :

॥अहल्या द्रौपदी तारा कुंती मंदोदरी तथा॥
॥पंचकन्या : स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥- ब्रह्म पुराण (3.7.219)

अर्थात : देवी अहिल्या जो महर्षि गौतम की धर्मपत्नी थी। देवी द्रौपदी जो 5 पांडवों की धर्म पत्नी थी। देवी तारा – वानर राज बाली की धर्मपत्नी थी। देवी कुंती महाराज पांडु की पत्नी और देवी मंदोदरी लंका नरेश रावण की पत्नी थी। मान्यताओं के अनुसार जो इन 5 देवियों के नाम प्रतिदिन स्मरण करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है। 

आइये जान लेते है इन पंच कन्याओं से जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में :

 1. देवी अहिल्या : देवी अहिल्या की कथा का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड में किया गया है। देवी अहिल्या अत्यंत रूपवती और गुणवती थी।  उनका विवाह महर्षि गौतम के साथ हुआ था और वो अपने पत्नी धर्म को निभाने वाली पतिव्रता नारी थी। देवी अहिल्या अपने पति महर्षि गौतम के साथ वन में रहकर तपस्या और ध्यान करती थी। शास्त्र अनुसार, एक बार महर्षि गौतम प्रातःकाल स्नान ने लिए अपने आश्रम से बाहर गए थे और देवराज इंद्र ने महर्षि गौतम की अनुपस्थिति में महर्षि गौतम का रूप लेकर देवी अहिल्या के साथ छल से सहवास किया था। किन्तु, कुछ पलों के बाद महर्षि गौतम को आभास हुआ की अभी तो रात बाकी है और सवेरा होने में काफी समय है तो वो अपने आश्रम की ओर वापस आने लगे। महर्षि गौतम जब अपने आश्रम पहुंचे तो उन्होंने अपनी कुटिया से देवराज इंद्र को बाहर निकलते हुए देखा।  देवराज इंद्र के द्वारा किये गए इस छल को देख महर्षि गौतम अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने देवराज इंद्र तथा देवी अहिल्या को श्राप दे दिया। देवी अहिल्या महर्षि गौतम से बार बार क्षमा मांगती रहीं और विश्वास दिलाने की कोशिश करती रहीं की इसमें उनका कोई दोष नहीं पर ऋषि गौतम ने उनकी कोई बात नहीं मानी और अपने श्राप से उन्हें शिला बना दिया और यह भी कहा कि त्रेता युग में जब भगवान विष्णु श्री राम अवतार में आएंगे तब उनके पवित्र चरण रज द्वारा तुम्हारा उद्धार संभव होगा।

2. देवी द्रौपदी : देवी द्रौपदी को भी पंच कन्याओं में शामिल किया गया है। देवी द्रौपदी को यज्ञसेनी भी कहा जाता है क्योंकि उनका जन्म यज्ञ की अग्नि द्वारा हुआ था। देवी द्रौपदी राजा द्रुपद की पुत्री तथा अत्यंत साहसी, धैर्यवान, और पवित्र स्त्री थी। देवी द्रौपदी प्रभु श्री कृष्ण की सखी तथा पांच पांडवों की पत्नी थी। कौरवों द्वारा देवी द्रौपदी के चीरहरण की चेष्टा में प्रभु श्री कृष्ण ने ही देवी द्रौपदी की लाज बचाई थी। 

3. देवी तारा : देवी तारा समुद्र मंथन से उत्पन्न एक अप्सरा थी। देवी तारा को देखकर सुषेण और बाली दोनों ही उनसे विवाह करना चाहते थे। इसलिए यह देखा गया कि देवी तारा के वामांग में कौन खड़ा है और सुनिश्चित किया गया कि देवी तारा के वामांग में जो खड़ा है वो उनका पति और दाहिनी ओर जो खड़ा है वो उनका पिता। चुकी, बाली देवी तारा के बायीं ओर वामांग में खड़े थे इसलिए वो देवी तारा के पति कहलाये और सुषेण उनके पिता कहलाये और इस तरह से देवी तारा तथा वानरराज बाली का विवाह हुआ। वानर राज बाली की मृत्यु के बाद देवी तारा अत्यंत दुखी हुई और अपने पति की छल से मृत्यु होने के कारण देवी तारा ने भगवान श्री राम को श्राप दे दिया था कि प्रभु श्री राम भी अपनी पत्नी देवी सीता को पाकर खो देंगे। देवी तारा ने यह भी श्राप दिया कि अगले जन्म में अर्थात जब भगवान विष्णु श्री कृष्ण अवतार में जन्म लेंगे तो उनका वध वानर राज बाली के हाथों होगा। देवी तारा के इस श्राप के कारण ही प्रभु श्री कृष्ण की मृत्यु एक बहेलिया के हाथों हुई जिसका नाम भील था और वो वानर राज बाली का ही दूसरा जन्म था।

4. देवी कुंती : यदुवंशी प्रतापी राजा शूरसेन की एक कन्या थी “पृथा” और एक पुत्र वसुदेव था। राजा शूरसेन ने पृथा को अपनी बुआ के संतानहीन पुत्र कुंतीभोज को गोद दे दिया। कुंतीभोज ने पृथा का नाम कुंती रख दिया और इस तरह पृथा यानी की देवी कुंती अपने असली माता पिता से दूर हो गयी। देवी कुंती ऋषि महात्माओं की सेवा करती थी। एक बार की बात है जब ऋषि दुर्वासा उनके महल में पधारे, देवी कुंती ने दुर्वासा ऋषि की सच्चे मन से सेवा की जिससे दुर्वासा ऋषि प्रसन्न होकर देवी कुंती को वरदान देते है और कहते है कि “पुत्री! मैं तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हूँ और मैं तुम्हें एक ऐसा दिव्य मंत्र देने वाला हूँ जिसके जाप से तुम जिस भी देवता का स्मरण करोगी वो तुम्हारे सामने प्रकट हो जाएंगे”। इसके बाद देवी कुंती का विवाह हस्तिनापुर के महाराज पांडु से हुआ। देवी कुंती के कुल 4 पुत्र थे जिनमें कर्ण, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन थे। सहदेव और नकुल देवी माद्री के पुत्र थे।

5. देवी मंदोदरी : देवी मंदोदरी का एक नाम चिर कुमारी भी है। देवी मंदोदरी मयदानव और अप्सरा हेमा की पुत्री थीं। देवी मंदोदरी लंका नरेश रावण की पत्नी थी। अप्सरा हेमा की पुत्री होने के कारण मंदोदरी अत्यंत रूपवती थी, पर वह आधी असुर भी थी। भगवान भोलेनाथ के वरदान के कारण ही देवी मंदोदरी का विवाह लंका नरेश रावण से हुआ था। देवी मंदोदरी ने भगवान भोलेनाथ से यह वरदान प्राप्त किया था कि उनका पति पृथ्वी पर सबसे विद्वान और शक्तिशाली होगा। देवी मंदोदरी और रावण के पुत्रों के नाम – मेघनाद, महोदर, प्रहस्त, विरुपाक्ष और भीकम वीर था।

Frequently Asked Questions

1. देवी अहिल्या किसकी पत्नी थी ?

देवी अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थी।

2. देवी द्रौपदी किसकी पत्नी थी ?

देवी द्रौपदी पांच पांडवों की धर्मपत्नी थी अर्थात युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पत्नी।

3. देवी तारा किसकी पत्नी थी ?

देवी तारा वानर राज बाली की पत्नी थी।

4. देवी कुंती किसकी पत्नी थी ?

देवी कुंती हस्तिनापुर नरेश पांडु की पत्नी थी।

5. देवी मंदोदरी किसकी पत्नी थी ?

देवी मंदोदरी लंका नरेश रावण की पत्नी थी।