Sign In

शिव और सती की अलौकिक प्रेम कथा (Shiv Aur Sati Ki Alokik Prem Katha)

शिव और सती की अलौकिक प्रेम कथा (Shiv Aur Sati Ki Alokik Prem Katha)

Reading Time: 6 minutes
Article Rating
4/5

ब्रह्मदेव के पुत्र प्रजापति दक्ष की अनेक कन्याएं थी और प्रत्येक कन्या ही रूपवती और गुणी थी। परन्तु, दक्ष के मन में माता आदिशक्ति को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा थी इसलिए प्रजापति दक्ष ने तपस्या करना शुरू कर दिया। तपस्या करते हुए अनेकों दिन बीत गए तब दक्ष की तपस्या देख कर माता आदिशक्ति प्रसन्न हो गयी और उन्होंने दक्ष की इच्छा और तपस्या का मान रखा और दक्ष को वरदान दिया की वो (Mata Aadishakti) दक्ष कन्या के रूप में जन्म लेंगी और उनका नाम “सती (Sati) होगा।

कुछ समय उपरांत, माता आदिशक्ति ने दक्ष कन्या के रूप में जन्म लिया। देवी सती दक्ष की सारी कन्याओं में सबसे रूपवती, गुणी और ज्ञानी भी थी। देवी सती, आदि शक्ति का ही रूप थी इसलिए बचपन से ही देवी सती की दिव्य लीलाएं देखकर उनकी माता, बहनें तथा प्रजापति दक्ष आश्चर्य चकित रह जाते थे। कुछ समय बाद, देवी सती विवाह के योग्य हो गई जिससे दक्ष घोर चिंता में डूब गए और उन्होंने देवी सती के विवाह के विषय में अपने पिता ब्रह्मदेव से भी चर्चा की।

ब्रह्मदेव ने दक्ष को यह ज्ञात करवाया कि देवी सती स्वयं ही आदिशक्ति है और भगवान शिव आदि पुरुष। देवी सती और भगवान शिव का विवाह होना तो प्रारम्भ से ही निश्चित है। परन्तु, दक्ष भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे, उनके ह्रदय में भगवान शिव को लेकर बैर और द्वेष की भावना थी और उन्होंने देवी सती के लिए शिव जी से भी अच्छा जीवनसाथी ढूँढ़ना शुरू कर दिया। परन्तु, देवी सती को भगवान शिव से प्रेम हो गया और वो शिव जी से ही विवाह करना चाहती थी और इस बात के लिए दक्ष अत्यंत क्रोधित हो उठे। दक्ष को देवी सती के लिए योग्य पति नहीं मिल सका तो उन्होंने देवी सती का स्वयंवर रचा जिसमें अनगिनत देव तथा राजा उपस्थित हुए थे परन्तु दक्ष ने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। देवी सती ने स्वयंवर में रखी भगवान शिव की मूर्ति को ही वरमाला पहनाकर अपने पति के रूप में वरण कर लिया जिसके पश्चात भगवान शिव वहां प्रकट हुए और देवी सती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिए तथा देवी सती को अपने साथ कैलाश लेकर चले गए। 

एक बार की बात है जब ब्रह्मदेव ने धर्म-निरूपण के लिए एक सभा रखी और उसमे सभी देवों को आमंत्रित किया था उन्होंने वहां अपने पुत्र दक्ष को भी बुलाया।  उस सभा में सभी उपस्थित हुए और भगवान शिव भी वहां पहुंचे थे। थोड़े देर बाद वहां प्रजापति दक्ष पहुंचे और उन्हें देखकर समस्त देवतागण उठकर उन्हें प्रणाम किये परन्तु भगवान शिव खड़े नहीं हुए और ना ही उन्होंने दक्ष को प्रणाम किया। जिसके फलस्वरूप, दक्ष ने इसे अपना अपमान माना और दक्ष के मन में भगवान शिव को लेकर बदले की भावना जाग उठी और उन्होंने शिव जी से बदला लेने की मन ही मन ठान ली।

एक बार भगवान शिव और देवी सती कैलाश पर्वत पर वार्तालाप कर रहे थे कि  इतने में उन्होंने कई विमानों को कनखल की ओर जाते हुए देखा। यह देख माता सती ने भगवान शिव से प्रश्न किया “प्रभु ये सारे विमान किसके है और कहाँ जा रहें है? – भगवान शिव ने देवी सती को बताया कि “ये सारे विमान तुम्हारे पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जा रहें है। सभी देव-देवियां उसी यज्ञ में सम्मिलित होने जा रहे हैं।” इसके बाद देवी सती ने दूसरा प्रश्न किया “क्या पिता जी ने आपको और मुझे यज्ञ के लिए आमंत्रित नहीं किया।” इस प्रश्न के उत्तर में भगवान शिव कहते है कि “नहीं सती, प्रजापति दक्ष के मन में मेरे प्रति बैर और बदले की भावना है, तो वो हमे क्यों बुलाएंगे?

देवी सती के मन में अपनी बहनों और माता से मिलने की इच्छा जगी। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस यज्ञ में चली जाऊं और सभी से मिल आऊं, आखिर, अपने पिता का ही तो घर है वहां जाने के लिए निमंत्रण पत्र तो नहीं लगेगा। यह सोचते हुए देवी सती ने भगवान शिव से पूछा “स्वामी क्या मै यज्ञ में चली जाऊं? अपनी बहनों से भी मिल आऊंगी।”

भगवान शिव ने देवी सती से कहा “सती! इस समय तुम्हारा वहां जाना उचित नहीं होगा। हो सकता है कि तुम्हारे पिता के मन की बदले की भावना के कारण वो तुम्हारा भी अपमान कर दें और उन्होंने हमे यज्ञ में आमंत्रित भी नहीं किया है इसलिए बिना बुलाये वहां जाना उचित नहीं है।” – शिव जी की बात सुनकर देवी सती ने कहा कि पिता के घर जाने के लिए मुझे आमंत्रण पत्र की आवश्यकता नहीं है और देवी सती अपने पीहर जाने के लिए जिद्द करने लगी। जिसे देख भगवान शिव को अनुमति देनी ही पड़ी। लेकिन, शिव जी ने माता सती को नंदी को भी अपने साथ ले जाने को कहा। देवी सती नंदी जी के साथ अपने पिता के घर प्रस्थान कर गयी।

देवी सती अपने पिता के घर आ तो गयी पर वहां किसी ने भी देवी सती के साथ प्रेमपूर्वक वार्तालाप नहीं किया। जब देवी सती अपने पिता को प्रणाम करने जाती है तो दक्ष उनका अनादर करते हुए कहते है कि “तुम्हें मैंने यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया, फिर क्यों तुम यहाँ चली आयी। तुम अपने आप को देखो और मेरी अन्य पुत्रियों को देखो। सभी कैसे सुसज्जित है और तुम बाघम्बर में चली आई।  आखिर, तुम्हारा पति तुम्हें और दे भी क्या सकता है, सिवाय इस बाघम्बर के। तुम्हारा पति श्मशान वासी है, वो तो भूतों का भगवान है।” दक्ष, भगवान शिव को लेकर अनगिनत कटुशब्द बोल रहा था जिसे सुनकर देवी सती अत्यंत दुखी हुई और उनके मन में पश्चाताप की भावना उमड़ पड़ी। देवी सती को भगवान शिव की बातें याद आ गयी की बिना बुलाए पिता के घर नहीं जाना चाहिए। देवी सती मन ही मन पश्चाताप की अग्नि में जल रही थी कि वो अपने पति की बातों का अनादर कर पिता के घर चली आई और वहां उन्हें अपने पिता के मुख से अपने ही पति को लेकर अपशब्द सुनने पड़ रहे है।

अपने पिता के मुख से भगवान शिव के बारे में अपशब्द सुनकर भी देवी सती मौन खड़ी रही। इसके बाद देवी सती ने यज्ञ मंडल में यज्ञ कुंड के सामने होती आहुतियों को देखा और उसे देख उन्होंने अपने पिता दक्ष से प्रश्न किया कि “पिताश्री, यहाँ सभी देवों को यज्ञ का भाग दिया जा रहा परन्तु यहाँ कैलाशपति भोलेनाथ का भाग कहाँ है? आपने उनका भाग क्यों नहीं रखा है? इसपर दक्ष ने क्रोधित होकर द्वेष की भावना में कहा कि “मैं शिव को देवता नहीं मानता।  तुम्हारा पति श्मशान वासी, भूतों का देवता है। सर्पों की माला पहनता है, नग्न रहने वाला, अपनी देह पर भस्म लगाकर रखता है और हड्डियों की माला धारण करता है। मैं शिव को देवता की पंक्ति में बैठने योग्य नहीं समझता। तो, उसे यज्ञ का भाग क्यों दूंगा?”

अपने पिता के मुख से यह सब सुन देवी सती की आँखे लाल हो उठी थी। उनका मुख प्रलयकारी सूर्य की भांति ही तेज दीप्तिमान था। देवी सती इन बातों के पीड़ा से क्रोधित हो उठीं और वो स्वयं से कहने लगी मै अपने पति भगवान शिव के लिए ये अपशब्द कैसे सुन रही हूँ। धिक्कार है मुझे स्वयं पर!! धिक्कार है यहाँ उपस्थित समस्त देवगणों पर जो खड़े-खड़े भगवान शिव के बारे में अपशब्द सुन रहे हैं। यदि कैलाशपति चाहें तो क्षण मात्र में समस्त सृष्टि को नष्ट कर सकते है। वो तो मंगलकारी है। वो मेरे स्वामी है और नारी के लिए उसका स्वामी ही उसका भगवान उसका स्वर्ग होता है। जो नारी अपने पति के लिए अपशब्द सुनती या बोलती है उसको नर्क प्राप्त होता है। सुनो पृथ्वी!, देवताओं सुनो! – मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया। अब मै एक भी क्षण के लिए जीवित नहीं रहना चाहती।  देवी सती अपने कथन के समाप्ति के बाद ही यज्ञ कुंड में कूद पड़ती है और देवी सती का शरीर यज्ञ कुंड की अग्नि में जल उठता है। यह सब देख नंदी भगवान शिव को बतलाते है और भगवान शिव अत्यंत दुःख और क्रोध में आकर अपनी जटा खींचकर कर भूमि पर फेंक देते है और तभी उस जटा से वीरभद्र प्रकट होते है जिन्हे भगवान शिव, प्रजापति दक्ष को मारने की आज्ञा देते है ।

वीरभद्र, दक्ष के यज्ञ स्थल की और आगे बढ़ते है और सारा यज्ञ स्थल तहस-नहस कर देते है। यज्ञ स्थल पर भगदड़ मच जाती है। सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि वहां से भागने लगते है। कुछ ही क्षण में सब कुछ नष्ट हो जाता है और वीरभद्र, दक्ष का मस्तक उसके धड़ से अलग कर देते है और तब, भगवान शिव वहां पहुँचते है। देवी सती की जलती हुई देह देखकर भगवान शिव सब कुछ भूल बैठते है। उनकी पीड़ा इतनी थी कि वो अपने आपको भी भूल बैठते है। जो शिव काम पर भी विजय प्राप्त कर चुके थे, समस्त सृष्टि को क्षण भर में नष्ट करने की क्षमता रखने वाले शिव ने अपना सब कुछ खो दिया और बिल्कुल बेसुध हो गए।

भगवान शिव ने देवी सती का जलता हुआ शरीर को उठाया और सभी दिशाओं में  उस भाँती देवी को लेकर भ्रमण करने लगे। देवी सती और भगवान शिव के इस प्रेम और दर्द को देखकर समस्त सृष्टि ही रुक गयी। वायु, जल, ग्रहों की गति ही रुक गयी। वायु के अभाव में पूरी सृष्टि के प्राणी ईश्वर से अपने प्राणों की गुहार करने लगें। यह सब देख भगवान नारायण ने सोचा की भगवान शिव अगर इस पीड़ा से बाहर न निकले तो सम्पूर्ण सृष्टि ही नष्ट हो जाएगी और इसलिए उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को टुकड़ों में बाँट दिया और वो सारे टुकड़ें एक-एक कर पृथ्वी पर अलग-अलग स्थाओं पर गिरने लगें। जब देवी सती के शरीर के सारे टुकड़ें पृथ्वी पर गिर गए तब भगवान शिव अपने चैतन्य में वापस आएं और सृष्टि के सरे कार्य फिर से चलने लगें। देवी सती के शरीर से कुल 108 टुकड़ें पृथ्वी पर आकर गिरे जो शक्तिपीठ कहलाएं। आज भी देवी सती के सभी शक्तिपीठों पर पूजा आराधना होती है।अनेक वर्ष बाद, देवी सती का जन्म देवी पार्वती के रूप में होता है और यह अधूरी प्रेम कथा पूरी होती है। माता पार्वती भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तप करती है और अंत में माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हो जाता है। ये थी शिव और सती की प्रेम कथा, जो पवित्र, वंदनीय और अमर है।

Frequently Asked Questions

1. देवी सती किस देवी की अवतार है?

देवी सती माता आदिशक्ति की अवतार है।

2. प्रजापति दक्ष किसे अपनी पुत्री के रूप में पाना चाहते थे?

प्रजापति दक्ष देवी सती को पुत्री के रूप में पाना चाहते थे।

3. दक्ष का मस्तक किसने काटा था?

दक्ष का मस्तक, वीरभद्र ने काटा था।

4. वीरभद्र किस देवता के अवतार है?

वीरभद्र, भगवान शिव के अवतार है।

5. देवी सती की कुल कितनी शक्तिपीठ है?

देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी सती की कुल 108  शक्तिपीठ है।