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स्वामी विवेकानंद की जन्म कुंडली में ग्रह योग (Swami Vivekananda ki Janam Kundli Me Grah Yog)

स्वामी विवेकानंद की जन्म कुंडली में ग्रह योग (Swami Vivekananda ki Janam Kundli Me Grah Yog)

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भारत महापुरुषों की भूमि है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में न जाने कितने विद्वान व ज्ञानी महापुरुषों ने जन्म लिया। स्वामी विवेकानंद भी उन्हीं महापुरुषों में से एक थे। स्वामी विवेकानंद करोड़ों लोगों के आदर्श हैं और पूरे विश्व में उन्होंने अपनी और भारत की छाप छोड़ी है। स्वामी विवेकानंद जी के व्यक्तित्व को सभी धर्म, आयु, वर्ग, जाति के लोग पसंद करते थे और आज भी उनकी लोकप्रियता की कहानियां पूरी दुनिया में देखने को मिलती है।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार जन्म लेते हैं और भगवान उन्हें स्वयं मानवता की भलाई के लिए धरती पर भेजते है। वैसे तो ऐसे लोग बेहद मेहनती व अलौकिक प्रतिभा के धनी होते हैं लेकिन ऐसे लोगों की कुंडली बेहद शक्तिशाली व प्रभावशाली भी होती है। ऐसे लोग अपनी किस्मत सुनहरे अक्षरों से लिखवा कर ही आते है। आज हम लोग जानेंगे कि स्वामी विवेकानंद की कुंडली में ऐसा क्या था जो कि उन्हें इतना महान, ज्ञानी, प्रतिभाशाली, प्रभावशाली व्यक्ति बनाता है। आखिर क्या है उनकी कुंडली में जो कि उन्हें करोड़ों लोगों से अलग और बेहतर बनाता है?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1883 को हुआ था और इस दिन को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद के लग्न कुंडली ये बताती है कि जन्म के समय सूर्य लग्न भाव में धनु राशि में विराजमान थे। मंगल ग्रह अपनी स्वराशि मेष में स्थित थे। बुध और शुक्र द्वितीय भाव में मकर राशि में उपस्थित थे। जहां बृहस्पति एकादश भाव में तुला राशि में स्थित थे तो वहीं चंद्रमा और शनि कन्या राशि में दशम भाव में स्थित थे। वहीं अगर बात करें राहु की तो वह द्वादश भाव में स्थित थे। स्वामी विवेकानंद जी का बचपन से बहुत ज्यादा आध्यात्मिक होने का कारण गुरु की राशि धनु का लग्न होना था। आइये जान लेते है स्वामी विवेकानंद जी के कुंडली में स्थित कुछ ग्रहों के योगों के बारे में :

स्वामी जी के कुंडली में ग्रह योग :

बेहद खास है शनि और चंद्र की युति :

जैसा कि हमने आपको बताया चंद्र और शनि दशम भाव में स्थित थे। दशम भाव को कर्म भी कहा जाता है और इसमें मजबूत शनि की स्थिति व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में बहुत सफलता दिलाती है वे इस क्षेत्र में एक कामयाब व जाना माना नाम बनाती है। ऐसा कहा जाता है कि चंद्र और शनि की युति व्यक्ति को एक दृढ़ निश्चयी इंसान बनाती है और ऐसे व्यक्ति जिस भी क्षेत्र में जाते हैं  या जिस भी काम को हाथ में लेते उसे पूरा करके व सफल होल्डर ही मानते है और स्वामी विवेकानंद अपने इस स्वभाव की लिए मशहूर थे। विवेकानंद जी आसानी से किसी की बात को नही मानते थे जब तक कि उन्हें पूरी तरह से बात की प्रामाणिकता का पता नही चल जाता वे उसे स्वीकार नहीं करते थे। यहां तक कि वे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की बातों को भी कभी कभी आसानी से नहीं स्वीकारते थे।

वर्गोत्तम कुंडली :

विवेकानंद की कुंडली की सबसे खास बात यह थी कि उनकी कुंडली वर्गोत्तम थी यानी सूर्य उनकी लग्न व नवमांश कुंडली दोनों में ही एक ही राशि में विराजमान थे और तो और उनका लग्न भी वर्गोत्तम है। इसके प्रभाव से व्यक्ति निर्भीक होता है और किसी भी काम को करने में घबराता नहीं है व उसे कुशलता से पूर्ण करता है। स्वामी विवेकानंद भी आत्मविश्वास से भरपूर थे और बचपन से ही वे अपनी उम्र से कठिन कार्यों को भी करने में हिचकिचाते नहीं थे। राष्ट्र भक्ति व समाज के लिए कल्याण की भावना उनमें कूट कूट के भरी थी और इसका कारण भी उनकी वर्गोत्तम कुंडली ही है।

राहु और केतु की दशा :

राहु और केतु किसी की भी कुंडली में बहुत महत्व रखते हैं और इनका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में बहुत होता है। विवेकानंद की कुंडली में राहु द्वादश भाव तो वहीं केतु छठे भाव में विराजमान हैं। वैसे तो द्वादश भाव अचेतन मन को दर्शाता है लेकिन यदि व्यक्ति अपने अचेतन मन को नियंत्रित कर ले तो चाहे राहु हो या केतु सभी अच्छे फल देते हैं। मन पर नियंत्रण पा लेना व्यक्ति की जीवन में सबसे बड़ी उप्लाब्धि होती है।स्वामी विवेकानंद ने परिश्रम,योग,ध्यान व अपने गुरु की सहायता से अपने अचेतन मन पर नियंत्रण पा लिया था।और यही गुण उनको दूसरों से अलग बनाता है और महान इंसान बनने के योग्य भी।

शुक्र और बुध :

व्यक्ति के जीवन में शुक्र और बुध ग्रह का भी बेहद गहरा प्रभाव होता है। जहां बुध ग्रह ज्ञान,वाणी और प्रतिभा को दर्शाता है तो वहीं शुक्र ग्रह कला,लोकप्रियता और सम्पन्नता का। द्वितीय भाव को वाणी का भाव कहा जाता है और बुध और शुक्र की उपस्थिति विवेकानंद जी को वाणी में प्रखर,ज्ञान में सर्वोत्तम,व लोकप्रियता में सर्वोच्च बनाती है। वे अपनी वाणी और ज्ञान से किसी को भी अपना प्रशंसक बना लेते थे। पूरी दुनिया ने उनके ज्ञान,तर्कशक्ति,प्रखर वाणी व प्रभावशाली व्यक्तित्व का लोहा माना है। अपने इन्हीं गुणों के कारण ने सिर्फ वे दुनिया में प्रसिद्ध व लोकप्रिय हुए बल्कि उन्होंने भारत के भी नाम विश्व पटल पर ऊंचा किया।

बृहस्पति और मंगल :

विवेकानंद की कुंडली में मंगल ग्रह पंचम भाव में स्वराशि में स्थित है जिससे वे शिक्षा व ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोत्तम थे व बहुत साहसी भी थे। उन्हें खेलकूद व कला के क्षेत्र में भी रुचि थी। बृहस्पति उनके एकादश भाव में स्थित थे जो कि ये बताता है कि वे विद्वानों के विद्वान थे व उन्हें अनेक प्रकार का ज्ञान था। स्वामी जी अलग अलग चीजों से ज्ञान प्राप्ति की कोशिश करते थे साथ ही वे अपने आस पास की वस्तुओं का अन्वेषण करते थे व उन्हें और करीब से जानने की कोशिश करते थे। बृहस्पति की यही स्थिति उनमें सदैव कुछ नया सीखने की जिज्ञासा उत्पन्न किया करती थी।

बेहद प्रभावशाली कुंडली :

पूरी कुंडली का अध्ययन करने से कुछ चीजें तो पूरी तरह से साफ हो जाती है। पहली यह कि उनकी कुंडली आध्यात्मिक जीवन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ बनाती है। दूसरा उनमें ज्ञान अर्जित करने की क्षमता आम लोगों से कहीं ज्यादा थी। वे सदैव कुछ नया सीखने के लिए तत्पर रहते थे और न सिर्फ ज्ञान उनकी रूचि अन्य कलाओं,खेल कूद में भी थी।

एक और चीज जो उनकी कुंडली साफ तौर पर बताती है उनकी वाणी और उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व।उनको वाणी का कोई मुकाबला नहीं था व उनके व्यक्तित्व की तो दुनिया दीवानी थी।उनके दर्शन मात्र से हो लोगों में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो जाता थे।अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व और वाणी के जरिये ही उन्होंने पूरी दुनिया में अपना और अपने देश का परचम लहराया।उनके ऊपर न जाने कितने लेख व किताबें लिखी जा चुकी हैं और न सिर्फ भारतीय बल्कि अन्य देशों के लेखकों ने उन पर किताबें लिखी है। इसके साथ ही कई भाषाओं में उनके चरित्र का वर्णन किया गया है। उनके अनेकों विचार युवाओं के लिए एक प्रेरणा है और करोड़ों लोगों के लिए जीवन मंत्र। वे भारत के लिए सबसे बड़ा गौरव हैं व हर भारतीय के लिए उनका अभिमान।

Frequently Asked Questions

1. स्वामी विवेकानंद जी जन्म कब हुआ था?

स्वामी विवेकानंद जी जन्म 12 जनवरी 1883 को हुआ था।

2. स्वामी विवेकानंद जी के कुंडली में मंगल ग्रह किस राशि में स्थित था ?

स्वामी विवेकानंद जी के कुंडली में मंगल ग्रह मेष राशि में स्थित था।

3. स्वामी विवेकानंद जी के कुंडली में बुध और शुक्र ग्रह किस राशि में स्थित था ?

स्वामी विवेकानंद जी के कुंडली में बुध और शुक्र ग्रह मकर राशि में स्थित था।