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वास्तु शास्त्र और पांच तत्वों का संबंध, जिन्हें जानना है बेहद जरूरी (Vastu Shastra Aur Panch Tatvon Ka Sambandh, Jinhe janna Hai Behad Jaruri)

वास्तु शास्त्र और पांच तत्वों का संबंध, जिन्हें जानना है बेहद जरूरी (Vastu Shastra Aur Panch Tatvon Ka Sambandh, Jinhe janna Hai Behad Jaruri)

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वास्तु तथा वैदिक शास्त्र के अनुसार, ब्रह्माण्ड की रचना पंचतत्व अर्थात पांच तत्वों द्वारा हुआ है। ये तत्व है : पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश और वायु। वैसे तो ये पांच तत्व (Panch Tatva) ही स्वतंत्र अवस्था में रहते है पर इन पांच तत्वों को मिला देने पर इनकी एक साथ सामूहिक ऊर्जा प्रभावशाली और लाभदायक होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, किसी भी घर या निवास स्थल पर पंच तत्वों का होना बेहद जरूरी है। सही रूप से निवास स्थल पर पांच तत्वों का होना उस निवास स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।

यदि घर या मकान को वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाते समय इन पांच तत्वों का ध्यान रखकर और उनका संतुलन बना कर रखा जाए तो उस घर में रहने वाले सारे लोग स्वस्थ रहते है और किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।

आइये जान लेते है इन पांच तत्वों के बारे में विस्तार से कि किस प्रकार ये पांच तत्व हमें कोई न कोई विशेष ऊर्जा और ज्ञान प्रदान करते है। तो चलिए शुरू करते है :

पृथ्वी तत्व (सूंघने की शक्ति) : (Prithvi Tatva)

पांच तत्वों में पृथ्वी एक ऐसी तत्व है जो प्राणियों को सूंघने की शक्ति प्रदान करती है। पृथ्वी तत्व पर 3 तत्व विशेष रूप से हावी होते है और वो तत्व है : अग्नि, जल और वायु तत्व। पृथ्वी अर्थात मिट्टी या भूमि इसलिए भूमि का चयन करते समय उस भूमि के आकार और प्रकार पर विशेष रूप से ध्यान दें चाहिए और तभी निवास स्थल, व्यवसाय स्थल या फिर धार्मिक स्थल का चयन करना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार, भवन या निवास स्थल के लिए हमेशा वर्गाकार या फिर आयताकार भूमि का ही चयन करना चाहिए। असामान्य आकार वाले भूमि का चयन बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए।  भूमि का चयन इस प्रकार करें कि भवन के दक्षिण पश्चिम यानी की नैऋत्य कोण पर पृथ्वी तत्व का स्वामित्व और आधिपत्य होना चाहिए। दक्षिण पश्चिम दिशा में ज्यादा भारी निर्माण करना चाहिए।

पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली गुण है सहनशीलता इसलिए दक्षिण पश्चिम में भारी निर्माण या मोटी दीवारों का निर्माण करना अत्यधिक शुभ साबित होता है।  इस दिशा में भारी वस्तुओं को रखना शुभ फलदायी साबित होता है। इस बात पर खास ध्यान रखें की दक्षिण पश्चिम में पृथ्वी तत्व की कमी होने से घर में रहने वाले लोगों के संबंधों में असुरक्षा और मनमुटाव उत्पन्न होती है ।

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अग्नि तत्व (स्पर्श का ज्ञान) :  (Agni Tatva)

पंचतत्वों में अग्नि एक ऐसा तत्व है जो प्राणियों को स्पर्श का ज्ञान प्रदान करता है। प्राणियों में स्पर्श का ज्ञान पांच तत्वों में 2 तत्व प्रदान करते है : पहला – अग्नि और दूसरा वायु। भूमि अथवा भूखंड के दक्षिण पूर्व यानि की आग्नेय कोण में अग्नि तत्व का प्रभाव और आधिपत्य होता है। इसलिए  दक्षिण पूर्व में अग्नि से जुड़े स्थान जैसे की रसोईघर रखना चाहिए।  इसके अलावा इस स्थान में बिजली का मीटर लगवाना शुभ होता है। 

अग्नि तत्व का प्रतीक होता है त्रिकोण इसलिए कभी भी त्रिकोणनुमा प्लाट या भूमि पर घर का निर्माण न करवाएं वार्ना कई समस्याओं और दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। घर या भवन में अग्नि तत्व के संतुलित होने से मान सम्मान में बढ़ोतरी तो होती ही है साथ ही आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है ।

जल तत्व (स्वाद की पहचान) : (Jal Tatva)

पांच तत्वों में जल एक ऐसी तत्व है जो प्राणियों को सूंघने की शक्ति प्रदान करती है। जल तत्व भूमि या निवास स्थल के उत्तर पूर्व दिशा से संबंधित है । वरुण देव जल तत्व के स्वामी है। मनुष्य के शरीर में जल तत्व स्वाद की पहचान देता है। घर के उत्तर पूर्व दिशा में जल तत्व का अधिपत्य होने के कारण इस दिशा में पानी की टंकी, हैंडपंप, दर्पण या पारदर्शी कांच रखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिशा में बरसात का पानी या साफ़ सुथरा जल का स्त्रोत होना शुभ है। लेकिन स्नानघर के लिए घर का पूर्वी हिस्सा और सेप्टिक टैंक के लिए उत्तर पश्चिम दिशा शुभ फलदायी होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में जल तत्व की कमी होने से परिवार के सदस्यों के बीच अनबन बनी रहती है।  

आकाश तत्व (सुनने की शक्ति) : (Akash Tatva)

पांच तत्वों में आकाश एक ऐसा तत्व है जो सुनने की शक्ति प्रदान करता है।  आकाश तत्व के स्वामी ग्रह देव गुरु बृहस्पति है तथा आराध्य देवता परमपिता ब्रह्मा है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में आकाश तत्व का सही अनुपात बनाए रखने के लिए घर में मीठे स्वर और शांति भरा माहौल होना बेहद जरूरी है।  यदि घर में आकाश तत्व में कमी होगी तो घर में आकर लड़ाई झगड़ें होते रहेंगे। 

घर का मध्य भाग यानी की ब्रह्मस्थान – आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस हिस्से का खुला होना बेहद जरूरी है जिससे की इस हिस्से में वायु का गमन हो सके। यही कारण था कि पुराने जमाने के लोग घर के मध्य में खुला छत रखते थे ताकि घर के कोने कोने तक रोशनी और वायु पहुंच सके।  ऐसा करने से घर के लोगो के बिच प्रेम भरा सम्बन्ध बना रहता है। 

वायु तत्व (संवाद) : (Vayu Tatva)

पांच तत्वों में वायु एक ऐसी तत्व है जिसे वास्तुपुरुष का “श्वास” माना गया है।  घर के लोगों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए घर में वायु तत्व का एक निश्चित अनुपात में होना बेहद जरूरी है। घर के उत्तर पश्चिम यानी कि वायव्य कोण में वायु तत्व की प्रधानता होती है। भवन में यदि वायु तत्व में कमी हो तो उस घर में रहने वाले लोग अल्पायु होते है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, इस दिशा को संवाद की दिशा भी कही जाती है। भवन में वायु तत्व के सही अनुपात में होने पर भवन में रहने वाले लोगो का समाज में मान – सम्मान भी बढ़ता है।

Frequently Asked Questions

1. पृथ्वी तत्व किस दिशा का प्रतिनिधित्व करती है ?

पृथ्वी तत्व दक्षिण पश्चिम यानी की नैऋत्य कोण का प्रतिनिधित्व करती है।

2. जल तत्व किस दिशा का प्रतिनिधित्व करता है ?

जल तत्व उत्तर पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है।

3. अग्नि तत्व किस दिशा का प्रतिनिधित्व करता है ?

अग्नि तत्व दक्षिण पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है।

4. वायु तत्व किस दिशा का प्रतिनिधित्व करता है ?

वायु तत्व उत्तर पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है।

5. आकाश तत्व किस दिशा का प्रतिनिधित्व करता है ?

आकाश तत्व ब्रह्म स्थान दिशा का प्रतिनिधित्व करता है।